क्या आपने कभी ऐसी हॉरर-कॉमेडी फिल्म देखी है, जिसे देखकर न डर लगे, न हँसी आए — बल्कि थिएटर से बाहर निकलते वक्त बस एक ही सवाल मन में उठे: “मैंने अभी क्या देखा?” Kapkapiii ठीक वैसी ही फिल्म है। आत्माओं, औइजा बोर्ड और दोस्ती जैसे मसालों के बावजूद यह फिल्म थकी हुई कहानी और पुराने चुटकुलों में उलझ कर रह जाती है।

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Romancham जैसी उम्मीद, लेकिन बन गई एक थकी हुई भूलभुलैया
Kapkapiii दिवंगत निर्देशक संगीथ सिवन के निर्देशन में बनी इस फिल्म से दर्शकों को उम्मीद थी कि यह Romancham जैसी मज़ेदार यात्रा पर ले जाएगी। लेकिन फिल्म का सफर जल्द ही एक ऐसी भूलभुलैया बन गया, जहां न हँसी थी, न डर, और न ही कहानी की दिशा।
शुरुआत में दिलचस्प विचार, लेकिन स्क्रिप्ट ने किया धोखा
Kapkapiii की शुरुआत एक साधारण लेकिन दिलचस्प कॉन्सेप्ट से होती है — दोस्तों का औइजा बोर्ड खेलना और एक आत्मा को बुला लेना। लेकिन धीरे-धीरे फिल्म का फोकस बिखरने लगता है। मकान मालकिन का प्रेम-एंगल, गैंगस्टर की एंट्री और तुषार कपूर की अचानक मौजूदगी — सब कुछ फिल्म को असंतुलित बना देते हैं।
“लेन के बोडे!” — संवाद जो हँसाने की बजाय चुप करा दें
Kapkapiii के संवाद इतने बनावटी लगते हैं कि हँसी के बजाय दर्शकों को चुप्पी मिलती है। “चादर मोड़ो” या “लेन के बोडे” जैसे संवाद स्क्रिप्ट में जबरन घुसे हुए लगते हैं। मज़ाकिया कोशिशें थकान में बदल जाती हैं और आप थिएटर में केवल इसलिए बैठे रहते हैं क्योंकि पैसे खर्च हो चुके हैं।
कलाकारों की मेहनत, लेकिन दिशा के बिना सब व्यर्थ
शरयस् तलपड़े ने पूरी कोशिश की, लेकिन खराब स्क्रिप्ट उनके टैलेंट को भी सीमित कर देती है। तुषार कपूर का किरदार पूरी फिल्म में बेअसर रहता है। बाकी कलाकारों ने भी मेहनत की, लेकिन जब फिल्म की दिशा ही गायब हो, तो कोई कितना ही अच्छा अभिनय क्यों न करे, असर नहीं होता।
तकनीकी पक्ष भी बना निराशा का कारण
अजय जयंती का संगीत फिल्म में न तो डर पैदा करता है, न रोमांच। सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग भी साधारण हैं। ‘जंप स्केयर’ इतने कमज़ोर और अनुमानित हैं कि दर्शक पहले से ही उन्हें भांप लेते हैं। दृश्य दोहराव वाले हैं और तकनीक भी फिल्म को नहीं बचा पाती।
निष्कर्ष — न डराया, न हँसाया, बस समय बर्बाद कराया
Kapkapiii एक ऐसी फिल्म है जो हॉरर-कॉमेडी जैसी रोचक शैली को बोझिल बना देती है। इसमें नयापन नहीं है, कहानी बिखरी हुई है, और निर्देशन पूरी तरह असफल साबित होता है। अगर आप वीकेंड पर कुछ अच्छा देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म आपकी सूची में नहीं होनी चाहिए।
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क्या आपने Kapkapiii देखी? आपको फिल्म कैसी लगी? क्या आप भी थिएटर से बाहर निकलते समय यही सोच रहे थे — “ये फिल्म थी या मज़ाक?” नीचे कमेंट करें और इस रिव्यू को दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करें ताकि वे इस ‘हॉरर-कॉमेडी’ जाल में न फँसें।