Sharmila Tagore भारतीय सिनेमा की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने न केवल कला और व्यावसायिक फिल्मों के बीच संतुलन साधा, बल्कि सामाजिक सीमाओं को चुनौती देते हुए स्त्री गरिमा का एक नया मापदंड भी स्थापित किया। एक ऐसा नाम जो परंपरा से जुड़ा रहा और आधुनिकता की ओर भी साहसिक कदम बढ़ाए। शर्मिला टैगोर का व्यक्तित्व सुरुचिपूर्ण है और उनका अभिनय सहज, गंभीर और सजीव। वे रवींद्रनाथ टैगोर की परपोती होने के नाते एक सांस्कृतिक विरासत की वाहक भी हैं, जिसे उन्होंने भारतीय सिनेमा के माध्यम से और समृद्ध किया।

Sharmila Tagore का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
Sharmila Tagore का जन्म 8 दिसंबर 1944 को हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनका परिवार बंगाली ब्राह्मण था और वे नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर की परपोती हैं। उनके पिता गितिंद्रनाथ टैगोर एक सरकारी अधिकारी थे और माँ ईरा बरुआ असमिया मूल की थीं। उनका बचपन हैदराबाद और फिर कोलकाता में बीता, जहाँ उन्होंने ‘लोरेटो कॉन्वेंट, आसनसोल’ और ‘सेंट जॉन डायससन्स गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल, कोलकाता’ से शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई में उनकी रुचि कम थी और स्कूल में कम उपस्थिति की वजह से वे अनुशासनहीन छात्रों में गिनी जाने लगीं। इस कारण परिवार ने उन्हें अभिनय में करियर बनाने की अनुमति दी।
फिल्मी करियर की शुरुआत: सत्यजित रे की खोज
Sharmila Tagore का फिल्मी सफर मात्र 13 साल की उम्र में शुरू हो गया था, जब महान निर्देशक सत्यजित रे ने उन्हें अपनी फिल्म ‘अपूर संसार’ (1959) में मुख्य भूमिका के लिए चुना। इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया और वे बंगाली सिनेमा में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में स्थापित हो गईं। इसके बाद उन्होंने ‘देवी’, ‘नायक’ जैसी कला फिल्मों में भी काम किया। हिंदी सिनेमा में उन्होंने 1964 में ‘कश्मीर की कली’ से कदम रखा, जिसमें उनके साथ शम्मी कपूर थे। इस फिल्म ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया।

व्यावसायिक सफलता और अभिनय की विविधता
शर्मिला टैगोर ने हिंदी सिनेमा में 60 और 70 के दशक में वह ऊँचाई हासिल की जिसे सिर्फ चुनिंदा अभिनेत्रियाँ ही पा सकीं। उन्होंने रोमांटिक फिल्मों से लेकर सामाजिक ड्रामाओं तक, हर शैली की फिल्मों में खुद को साबित किया। 1967 की फिल्म ‘अन इवनिंग इन पेरिस’ में उन्होंने जब बिकिनी पहनी, तब वे पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं जिन्होंने यह साहसिक कदम उठाया। यह निर्णय उस समय विवादों में रहा, लेकिन इससे उनका आत्मविश्वास और स्वतंत्र सोच स्पष्ट हो गई।
उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं – ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘दाग’, ‘छोटी बहू’, ‘त्याग’, ‘मौसम’ और ‘सत्यकाम’। ‘आराधना’ (1970) में उनके सशक्त अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। ‘मौसम’ (1975) के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इन फिल्मों में उन्होंने स्त्री के भीतर चल रहे भावनात्मक संघर्षों को अत्यंत सजीवता से प्रस्तुत किया।
Sharmila Tagore का निजी जीवन: प्यार, रिश्ता और परिवार
Sharmila Tagore का व्यक्तिगत जीवन भी उनके फिल्मी सफर जितना ही प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी से प्रेम विवाह किया। यह रिश्ता सिनेमा और खेल के दो जगतों का संगम था। 27 दिसंबर 1969 को शादी से पूर्व शर्मिला ने इस्लाम धर्म अपनाया और उनका नाम ‘बेगम आयशा सुल्ताना’ रखा गया।
उनके तीन संतानें हैं – बेटा सैफ अली खान, जो बॉलीवुड के प्रमुख अभिनेताओं में से हैं, और दो बेटियाँ – सोहा अली खान (अभिनेत्री) और सबा अली खान (फैशन डिजाइनर और धार्मिक ट्रस्ट की संरक्षक)। उनका परिवार भारतीय कला, फैशन, खेल और फिल्म के क्षेत्र में सक्रिय रहा है। उनकी बहू करीना कपूर और दामाद कुणाल खेमू भी प्रमुख फिल्मी हस्तियाँ हैं। उनकी पोती सारा अली खान और पोते तैमूर अली खान तथा इब्राहिम अली खान भी लगातार चर्चाओं में बने रहते हैं।

सम्मान, पुरस्कार और योगदान
Sharmila Tagore को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। ‘आराधना’ के लिए फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड और ‘मौसम’ के लिए नेशनल अवॉर्ड ने उन्हें अभिनय की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। साल 2003 में उन्हें ‘Abar Aranye’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
1998 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और 2013 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाज़ा। हाल ही में, 2023 में उन्होंने फिल्म ‘गुलमोहर’ में अपनी भूमिका से फिर साबित कर दिया कि उम्र प्रतिभा की सीमा नहीं बन सकती, और इसके लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर OTT क्रिटिक्स चॉइस अवॉर्ड’ मिला।
पसंद-नापसंद और व्यक्तित्व की झलक
Sharmila Tagore का जीवन हमेशा गरिमा और सौंदर्य का परिचायक रहा है। उन्हें शॉपिंग करना, बागवानी करना, किताबें पढ़ना और संगीत सुनना बेहद पसंद है। उनकी पसंदीदा निर्देशक सत्यजित रे रहे हैं, जिनसे उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। उन्हें संजीव कुमार, शशि कपूर, राजेश खन्ना और धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता बहुत पसंद थे। संगीत में उन्हें बेगम अख्तर की गायकी बेहद प्रिय थी और खाने में बंगाली व्यंजन उनके दिल के करीब हैं। दिल्ली का मशहूर रेस्टोरेंट ‘बुखारा’ भी उनकी पसंदीदा जगहों में शामिल है।
कुछ कम ज्ञात लेकिन दिलचस्प तथ्य
Sharmila Tagore के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें उन्हें और भी विशेष बनाती हैं। वे रवींद्रनाथ टैगोर की परपोती हैं, लेकिन उनकी अभिनय की शुरुआत एक ऐसे दौर में हुई जब महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं। उनकी बहन ओइंद्रिला टैगोर ने भी एक फिल्म ‘काबुलीवाला’ (1957) में काम किया था। शर्मिला पढ़ाई में कमजोर थीं और स्कूल में उनकी उपस्थिति बहुत कम रहती थी। उनके सामने दो ही विकल्प थे – या तो पढ़ाई करें या अभिनय – और उन्होंने अभिनय को चुना, जो उनके लिए एक जीवन परिवर्तन साबित हुआ।
समय से आगे चलने वाली अदाकारा
Sharmila Tagore केवल एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संस्था हैं। उन्होंने उस दौर में स्त्रियों को स्वतंत्र सोचने और साहसी बनने का मार्ग दिखाया जब समाज रूढ़ियों से बंधा हुआ था। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि कैसे गरिमा, आत्मविश्वास और प्रतिभा के साथ कोई भी स्त्री किसी भी क्षेत्र में महान ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकती है। सिनेमा को उनकी सबसे बड़ी देन यह रही कि उन्होंने हर भूमिका को न केवल निभाया, बल्कि उसमें अपनी आत्मा डाल दी। उनका नाम हमेशा भारतीय फिल्म इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।