Aankhon Ki Gustaakhiyan -एक ट्रेलर जो रूह तक उतरता है

Aankhon Ki Gustaakhiyan

Aankhon Ki Gustaakhiyan – जब ख़ामोशी इश्क़ की सबसे ऊँची आवाज़ बन जाए “यह फ़िल्म Ruskin Bond की कहानी “The Eyes Have It” पर आधारित है ।

“कुछ कह कर इश्क़ जताया नहीं जाता… और कुछ देख कर समझा भी नहीं जाता।”
शायद यही बात “आँखों की गुस्ताखियाँ” ट्रेलर देखने के बाद ज़ेहन में सबसे पहले आती है।

कभी-कभी कोई फ़िल्म ट्रेलर मात्र नहीं होता – वो एक अनुभव होता है। एक खामोश झोंका, जो आपकी आंखों से होता हुआ दिल तक उतर जाता है। निर्देशक संतोष सिंह की नयी पेशकश “आँखों की गुस्ताखियाँ” भी कुछ ऐसा ही असर छोड़ती है।

रिलीज़ और अवधि: 1 जुलाई 2025 को रिलीज़ हुआ 2 मिनट 39 सेकंड का ट्रेलर, जिसमें दिल जमने-छूटने जैसे पल हैं

यह ट्रेलर सिर्फ दृश्य नहीं, दृष्टिकोण है। एक ऐसा नज़रिया, जहाँ अंधकार में भी रौशनी की उम्मीदें पनपती हैं – जहाँ आँखें बंद हैं लेकिन दिल की नज़रों से पूरी दुनिया देखी जा सकती है।

Aankhon Ki Gustaakhiyan ट्रेलर का विश्लेषण: हर फ्रेम एक फीलिंग

शुरुआती सीन से ही ट्रेलर दर्शक को अपनी ओर खींचता है – कोई ज़ोरदार डायलॉग नहीं, न कोई हाई वोल्टेज म्यूज़िक – फिर भी ये ट्रेलर दिल के तार झंकृत कर देता है। ट्रेन में दो अजनबियों की मुलाकात – पर इनकी आँखें नहीं मिलतीं, फिर भी नज़रें टकराती हैं।

इस दो मिनट तीस सेकंड के ट्रेलर में जितनी साधारणता है, उतनी ही परिपक्वता

  • विक्रांत मैसी के एक्सप्रेशन, उनका बौखलाहट में डायलॉग—
    “अंधे नहीं हैं हम… देख लेते हैं… महसूस कर लेते हैं…”
    सीधे रूह को छू जाता है।
  • वहीं शनाया कपूर, जिन्हें लेकर पहले से ही कई पूर्वाग्रह हैं, इस ट्रेलर में अप्रत्याशित रूप से परिपक्व अभिनय करती दिखती हैं। उनकी संवादहीन उपस्थिति, कैमरे से आँख मिलाने का तरीका, और उनका वो एक डायलॉग—
    “मैं अंधी हूँ… मगर मैंने तुम्हारी आँखों में रोशनी देखी है”
    – सब कुछ बेहद प्रभावशाली है।

Aankhon Ki Gustaakhiyan संवाद और मौन की शक्ति

इस ट्रेलर की सबसे बड़ी ताकत है – मौन। यहाँ संवाद कम हैं, पर उनकी जगह संवेदना ने ले ली है। विक्रांत मैसी ‘जहाँ’ नामक एक दृष्टिहीन संगीतज्ञ की भूमिका निभा रहे हैं और शनाया कपूर ‘सबा शेरगिल’ नामक अन्ध नाटक कलाकार। ट्रेलर इन दोनों की मुलाक़ात को स्टाइलिश तरीके से दर्शाता है ।

आज जब ट्रेलर को अक्सर चीख-चीखकर बेचा जाता है, यहाँ एक सुकून देने वाला संगीत, कोमल स्वर, और धीमी गति की एक सुंदर कहानी है जो दर्शक से बातचीत नहीं करती – उसे अपने साथ बहा ले जाती है।

विशाल मिश्रा का संगीत यहाँ पृष्ठभूमि नहीं, भावना का पर्याय बनता है। ‘नज़ारा’, ‘अलविदा’ जैसे गाने पहले ही इस प्रेम कहानी की आत्मा बन चुके हैं।

Aankhon Ki Gustaakhiyan कहानी की बुनावट – रूसीन बॉन्ड की आत्मा का आधुनिक रूपांतरण

“आँखों की गुस्ताखियाँ” रस्किन बॉन्ड की क्लासिक कहानी “The Eyes Have It” पर आधारित है – लेकिन इसमें केवल उसका कथानक नहीं, उसकी भावनात्मक गहराई भी है।

कहानी की मूल आत्मा – कि आँखों से देखना ही सब कुछ नहीं होता, महसूस करना असली देखना है – को ट्रेलर बड़ी खूबसूरती से पेश करता है।

फिल्म का ट्रेलर एक अहसास कराता है कि जब दो अजनबी मिलते हैं, उनके बीच संवाद से ज़्यादा मौन बात करता है, और जब ये दोनों अंधे हों – तब ये मौन और भी मुखर हो जाता है।

Aankhon Ki Gustaakhiyan
Aankhon Ki Gustaakhiyan

Aankhon Ki Gustaakhiyan अभिनय – विक्रांत और शनाया की दिल छू लेने वाली जोड़ी

विक्रांत मैसी आज के उन गिने-चुने अभिनेताओं में हैं जो किसी भी किरदार को आत्मा से जीते हैं। यहाँ भी उनकी बॉडी लैंग्वेज, संवाद की टोन, और किरदार में डूब जाना – सब कुछ ट्रेलर में झलकता है।

शनाया कपूर, जिनसे बहुत अपेक्षाएँ नहीं थीं, उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से एक परिपक्व, आत्म-संयमी परफॉर्मेंस दी है। उनके चेहरे की मासूमियत और आँखों की गहराई इस भूमिका के लिए एकदम सटीक बैठती है।

तकनीकी दृष्टिकोण: कैमरा भी देखता नहीं, महसूस करता है

सिनेमैटोग्राफर तन्मय मीर ने जिस तरह से क्लोज़-अप शॉट्स का इस्तेमाल किया है, वो काबिले-तारीफ़ है। आँखों के आस-पास का हर फ्रेम जैसे कोई कविता है – एक दृष्टिहीन कहानी को देखने के बजाए महसूस करवाने की कोशिश।

निर्देशक संतोष सिंह ने बड़ी चालाकी से एक नाज़ुक विषय को छूते हुए कहानी को संवेदनशीलता से पेश किया है। कोई ओवरडोज़ नहीं, कोई नाटकीयता नहीं – सब कुछ बस धीरे-धीरे आपकी रूह में उतरता है।

सोशल मीडिया और पब्लिक रिएक्शन

फैंस ने शनाया को “सभी नेपो किड्स से बेहतर” कहकर सराहा, वहीं विक्रांत को कुछ हल्की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा – पर अधिकांश प्रतिक्रियाएं इस बात पर एकमत हैं कि फिल्म एक soulful cinematic experience होने वाली है।

रेडिट हो या इंस्टा, हर कोई कह रहा है —
“ये ट्रेलर नहीं, एक अहसास है।”

निष्कर्ष: क्या आप तैयार हैं, अपनी आँखों की गुस्ताखी के लिए?

ट्रेलर खत्म होते-होते एक खालीपन-सा महसूस होता है – और यही इसका जादू है।

“आँखों की गुस्ताखियाँ” सिर्फ एक रोमांटिक फिल्म नहीं है, ये सेंसिटिविटी की परीक्षा है। एक समय में, जब फिल्मों में शोर, हिंसा, और सतही रोमांस हावी है, ये फ़िल्म हमें रुक कर महसूस करने की तमीज़ सिखाती है।

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