Aparna Sen: पर्दे के पीछे छिपा एक क्रांतिकारी चेहरा

Aparna Sen: पर्दे के पीछे छिपा एक क्रांतिकारी चेहरा

वो लड़की, जिसने 16 साल की उम्र में सत्यजित रे की फ़िल्म Teen Kanya से परदे पर दस्तक दी — आज भारतीय सिनेमा की सबसे बुद्धिजीवी, साहसी और बहुमुखी आवाज़ों में गिनी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी था जब अपर्णा सेन ने अभिनय से ऊबकर सबकुछ छोड़ देने का मन बना लिया था? या फिर ये कि जिस फिल्म 36 चौऱंगी लेन से उन्हें विश्व पहचान मिली, उसे बनाने से पहले वे बुरी तरह असफल हो चुकी थीं?

Aparna Sen की कहानी कोई परीकथा नहीं — यह साहस, विद्रोह, और आंतरिक संघर्षों से बुना एक ऐसा सफर है, जिसमें पर्दे के पीछे कहीं ज़्यादा ज्वालामुखी फूटते हैं। उन्होंने न सिर्फ कैमरे के सामने किरदारों को जिया, बल्कि कैमरे के पीछे रहकर ऐसी कहानियाँ कही जो भारतीय समाज के सबसे गहरे, सबसे असहज सवालों से टकराती हैं — और कई बार तो उन्हें झकझोर कर रख देती हैं।

यह कहानी सिर्फ एक अभिनेत्री की नहीं, बल्कि एक सोच की है। एक ऐसी सोच, जो परंपरा से टकराती है, पितृसत्ता को चुनौती देती है और हर बार नये सिनेमा की परिभाषा गढ़ती है। अब जानिए वो अनकहा जो अब तक छुपा रहा। Aparna Sen: एक जीवन यात्रा जो सिनेमा के हर फ्रेम से गुज़री

Aparna Sen

आरंभिक जीवन: साहित्य, कला और विरासत की कोख से जन्मी एक आत्मा

25 अक्टूबर 1945 को ब्रिटिश भारत के कोलकाता (तब का कलकत्ता) में जन्मी Aparna Sen का वास्तविक नाम था अपर्णा दासगुप्ता। एक प्रतिष्ठित बंगाली बैद्य परिवार में जन्मीं, अपर्णा कला और साहित्य के वायुमंडल में पली-बढ़ीं। उनके पिता चिदानंद दासगुप्ता भारतीय सिनेमा के महत्वपूर्ण समीक्षक, फिल्म निर्देशक और ‘फिल्म सोसाइटी मूवमेंट’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनकी माँ सुप्रिया दासगुप्ता एक उत्कृष्ट परिधान डिजाइनर थीं, जिन्होंने 73 वर्ष की आयु में अमोदिनी जैसी फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया। Aparna Sen बंगाल के महान कवि जीवनानंद दास की भतीजी थीं। यह साहित्यिक और कलात्मक पृष्ठभूमि ही थी जिसने अपर्णा को एक व्यापक दृष्टि और रचनात्मक ऊर्जा से संपन्न किया। Aparna Sen का बचपन हज़ारीबाग और कोलकाता के बीच बीता। उन्होंने कोलकाता के प्रतिष्ठित Modern High School for Girls से शिक्षा प्राप्त की और आगे Presidency College में अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ा, हालांकि अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सकीं। लेकिन शिक्षा के दौरान ही उनका झुकाव कला, रंगमंच और सिनेमा की ओर गहराने लगा था।

पहली नज़र में कैमरा: जब दुनिया ने देखा एक नायिका का चेहरा

1960 में, केवल 15 वर्ष की उम्र में, उनकी तस्वीर प्रसिद्ध फोटोग्राफर ब्रायन ब्रेक के ‘Monsoon’ सीरीज़ के लिए खींची गई। इस सीरीज़ में उनकी तस्वीर Life Magazine के कवर पर प्रकाशित हुई — यह क्षण उनकी नियति को बदलने वाला था। एक साल बाद, 1961 में, अपर्णा सेन ने सत्यजित रे की फिल्म Teen Kanya में “समाप्ति” खंड में मृण्मयी की भूमिका निभाई। यह भूमिका इतनी सजीव और स्वाभाविक थी कि दर्शकों और समीक्षकों दोनों ने उनकी प्रतिभा को तुरंत पहचान लिया।

अभिनय की दुनिया में प्रतिष्ठा और विविधता

Aparna Sen ने 1960 और 70 के दशक में न केवल बंगाली सिनेमा में बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपना नाम कमाया। अकास कुसुम (1965, मृणाल सेन), मेमसाहब (1972), और बसंता बिलाप (1973) जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्ध कर दिया। उनका सौंदर्य, परिष्कृत भाषा और गंभीर अभिनय शैली उन्हें एक पारंपरिक नायिका की परिभाषा से अलग खड़ा करती थी। वह कभी-कभी ज़िद्दी दिखती थीं, कभी मासूम, कभी विद्रोही — लेकिन हमेशा गहराई से जुड़ी हुई। हिंदी सिनेमा में भी उन्होंने इमान धर्म (1977), एक दिन अचानक (1989) और घात (2000) जैसी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई 2009 में अंतहीन में उन्होंने शबाना आज़मी और राहुल बोस के साथ अभिनय किया, जो चार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म बनी। इसके बाद बोहोमान (2019) और बासु परिवार में भी उनके परिपक्व अभिनय ने दर्शकों को प्रभावित किया।

कैमरे के पीछे: एक निर्देशक की पुनर्जन्म गाथा

1981 में, Aparna Sen ने निर्देशन में कदम रखा और वो भी एक इंग्लिश फिल्म के साथ — 36 चौऱंगी लेन। इसमें एक बूढ़ी एंग्लो-इंडियन शिक्षिका की भावनाओं, अकेलेपन और सामाजिक उपेक्षा को चित्रित किया गया। यह फिल्म उनके निर्देशन कौशल की गहराई और संवेदनशीलता को दर्शाती है। इस फिल्म ने उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाए — सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज़ी फीचर फिल्म। इसके बाद अपर्णा ने ऐसे विषयों को चुना जिन्हें मुख्यधारा की फिल्में छूने से कतराती थीं। परमा (1984), युगांतो (1995), परोमिता का एक दिन (2000), Mr. & Mrs. Iyer (2002), 15 पार्क एवेन्यू (2005), और The Rapist (2021) जैसी फिल्में समाज, स्त्री-मन, युद्ध, यौन हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों पर केंद्रित रहीं। उनकी फिल्मों में अक्सर स्त्रियाँ केंद्र में होती हैं — लेकिन वे कोई आदर्श देवी नहीं, बल्कि जटिल, मानवीय, संघर्षरत स्त्रियाँ होती हैं।

परिवार और निजी जीवन: माँ, साथी और लेखिका

Aparna Sen का निजी जीवन भी उनके फिल्मी सफर जितना ही विविधतापूर्ण रहा। उनके तीन विवाह हुए — संजय सेन, साहित्यकार और पत्रकार मुकुल शर्मा, और वर्तमान में लेखक कल्याण रे से। उनकी बेटी कोंकणा सेन शर्मा भी आज एक सफल अभिनेत्री और निर्देशक हैं। माँ-बेटी की जोड़ी ने Mr. & Mrs. Iyer, Iti Mrinalini जैसी कई फिल्मों में साथ काम किया है। उनकी दूसरी बेटी डोना सेन मीडिया और लेखन के क्षेत्र से जुड़ी हैं। अपर्णा हमेशा से मानती रही हैं कि एक औरत की पहचान उसकी भूमिका से कहीं आगे है — यही विचार उनकी फिल्मों और निजी जीवन दोनों में झलकता है।

पत्रकारिता और संपादन: कला से परे सामाजिक संवाद

1986 से 2005 तक अपर्णा सेन Sananda नामक महिलाओं की पत्रिका की संपादिका रहीं। इस पत्रिका के माध्यम से Aparna Sen ने नारी मुद्दों, स्वास्थ्य, फैशन और स्त्री-अधिकार पर जागरूकता बढ़ाई। बाद में उन्होंने Paroma और Prathama Ekhon जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया, जो अंततः बंद हो गईं, लेकिन उनके विचारशील लेखन की छाप छोड़ गईं।

पुरस्कार और सम्मान: एक जीवन, कई उपलब्धियाँ

Aparna Sen को उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1987 में पद्मश्री से सम्मानित किया।

राष्ट्रीय पुरस्कारों में:
• 36 चौऱंगी लेन (1981) — सर्वश्रेष्ठ निर्देशन, सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज़ी फीचर फिल्म
• परमा (1984) — सर्वश्रेष्ठ बंगाली फीचर फिल्म
• युगांतो (1995)
• परोमिता का एक दिन (2000)
• Mr. & Mrs. Iyer (2002) — निर्देशन, स्क्रीनप्ले, राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
• 15 पार्क एवेन्यू (2005)

BFJA और फिल्मफेयर अवॉर्ड्स:
13 बार BFJA अवॉर्ड, 6 बार Filmfare East अवॉर्ड — अभिनय, निर्देशन, पटकथा और आजीवन उपलब्धि श्रेणियों में।

अंतरराष्ट्रीय मान्यता:
• करलोवी वेरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में नामांकन
• बुसान फेस्टिवल (2021) में The Rapist के लिए किम जी-सिओक अवॉर्ड में नामांकित
• Indian Film Festival of Melbourne (2022) — Best Director अवॉर्ड

विचारधारा और सामाजिक दृष्टिकोण

Aparna Sen हमेशा एक प्रगतिशील और मुखर सोच की प्रतिनिधि रही हैं। चाहे राजनीतिक असहमति हो या सामाजिक अन्याय, उन्होंने कभी चुप्पी नहीं ओढ़ी। उनके लेख, भाषण और फिल्में भारत में नारीवाद और स्वतंत्र विचार की सबसे मुखर आवाजों में से हैं।

निष्कर्ष: एक चेतना, जो अब भी जाग रही है

Aparna Sen कोई साधारण कलाकार नहीं — वे एक विचार हैं, एक आंदोलन हैं, एक कहानी हैं जो अब भी कही जा रही है। उन्होंने अभिनय में अपनी सादगी और प्रभावशीलता से लोगों को छुआ, और निर्देशन में अपने गहरे दृष्टिकोण से समाज को जागरूक किया। वे उन कुछ लोगों में हैं जो हर फ्रेम को एक बयान में बदल देती हैं — एक स्त्री के अधिकार, समाज के पाखंड, और रिश्तों के अंतर्विरोधों पर आधारित। Aparna Sen का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है। वह अब भी सक्रिय हैं, लिख रही हैं, बना रही हैं और लगातार चुनौती दे रही हैं — उन परिभाषाओं को, जिनमें औरतों को कैद कर दिया गया था।

FILM , FAME, FANTACY

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