Satyaki की महागाथा का किया भीष्म पितामह ने विमोचन

Satyaki

दोस्तों, आपने महाभारत के अर्जुन, भीम और दुर्योधन के बारे में तो खूब सुना होगा, लेकिन क्या कभी किसी ने आपको सात्यकि के बारे में दिल से बताया? शायद नहीं। पर अब वक्त है उस अनकहे योद्धा को फिर से जीने का। फिल्म निर्देशक और लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह की नई किताब ‘सात्यकि: द्वापर का अजेय योद्धा’ ने इस भूले-बिसरे चरित्र को फिर से हमारे सामने लाकर खड़ा कर दिया है। ‘Satyaki’ “महाभारत का गुमनाम हीरो लौटा किताबों में! और इसकी सबसे खास बात? इसे खुद ‘भीष्म पितामह’ यानी मुकेश खन्ना ने अनबॉक्स किया है!

Satyaki भीष्म पितामह ने खोला एक नया अध्याय

जी हां, वही मुकेश खन्ना जिन्होंने दूरदर्शन पर महाभारत के ‘भीष्म पितामह’ बनकर पूरे देश को दिव्य ज्ञान दिया था, उन्होंने इस किताब की लॉन्चिंग की। जैसे ही उन्होंने किताब का पहला पन्ना पढ़ा, उनकी आंखों में चमक और मन में जिज्ञासा दोनों नजर आई। उन्होंने कहा, “ये तो ऐसा योद्धा है जिसकी गाथा सुनना आज की पीढ़ी के लिए बेहद ज़रूरी है।”

Satyaki कौन थे ? क्यों है ये नाम आज चर्चा में?

सात्यकि यदुवंशी वीर थे। श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और अर्जुन के प्रिय मित्र भी। वो ऐसा योद्धा था जो कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा। लेकिन उसकी गाथा महाभारत में बहुत विस्तार से नहीं बताई गई। यही वजह है कि समय के साथ उसका नाम धीरे-धीरे धुंधला पड़ता गया। सात्यकि, जिन्हें युयुधान के नाम से भी जाना जाता है, महाभारत काल के एक महान योद्धा थे। वो न केवल युद्धकला में निपुण थे, बल्कि नैतिकता, निष्ठा और धर्म के लिए मर मिटने वाले सेनापति भी थे। कृष्ण के सबसे प्रिय योद्धाओं में से एक, सात्यकि की वीरता कई बार अर्जुन और भीम के समकक्ष मानी गई है।सात्यकि का जन्म यदुवंश में हुआ था। वे शिनि वंश के थे, और इसी वजह से उन्हें “शैनी” भी कहा जाता है। शिनि, यदु के पुत्र थे, और इसलिए सात्यकि कृष्ण के कुटुंबी भी थे। यह वही वंश है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, और उद्धव जैसे चरित्रों ने जन्म लिया।

श्रीकृष्ण और सात्यकि केवल संबंधियों की तरह नहीं, बल्कि मित्र और युद्ध-सहयोगी भी थे। श्रीकृष्ण को जब-जब किसी भरोसेमंद योद्धा की ज़रूरत पड़ी, उन्होंने सात्यकि को आगे किया। सात्यकि ने हमेशा कृष्ण के हर निर्णय का समर्थन किया — चाहे वो धर्मयुद्ध हो या रणनीति।

सात्यकि ने द्रोणाचार्य से शिक्षा ली थी, और वे अर्जुन के सहपाठी भी थे। उन्होंने धनुर्विद्या, तलवार चलाना, गदा युद्ध, रथ संचालन जैसी सभी युद्धकलाओं में महारत हासिल की थी। वे अकेले हजारों शत्रु सैनिकों से भिड़ने में सक्षम थे, और कई बार उन्होंने यही करके दिखाया भी।

महाभारत में सात्यकि ने पांडवों का साथ दिया। वे अर्जुन के मित्र और अनुयायी थे। कुरुक्षेत्र युद्ध में उन्होंने कई निर्णायक लड़ाइयाँ लड़ीं। सात्यकि ने अर्जुन के सारथी रहते हुए उनका साथ दिया, जब वे जयद्रथ वध के लिए सूर्यास्त से पहले-पहले निकल पड़े थे।

सात्यकि की वीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, कृपाचार्य, और अश्वत्थामा जैसे महारथियों से कई बार आमने-सामने युद्ध किया — और हर बार विजयी होकर लौटे।

हालाँकि द्रोणाचार्य कौरवों की ओर से लड़ रहे थे, सात्यकि ने अपने गुरु के सामने भी धर्म को प्राथमिकता दी। उन्होंने न सिर्फ द्रोण के खिलाफ युद्ध किया, बल्कि उनकी नीतियों पर प्रश्न भी उठाए। यह उनके चरित्र की गहराई और नैतिकता को दर्शाता है।

जब अर्जुन को सूर्यास्त से पहले जयद्रथ को मारने का वचन देना पड़ा था, उस दिन सात्यकि ने अर्जुन के पीछे-पीछे जाकर अनेक योद्धाओं से अकेले भिड़ंत की थी। उन्होंने द्रोणाचार्य, कर्ण और कृपाचार्य जैसे महारथियों के चक्रव्यूह को भेदते हुए पांडवों की विजय सुनिश्चित की।

महाभारत युद्ध के बाद भी जब अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर पर हमला किया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र को मार डाला, तो सात्यकि उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने अश्वत्थामा को पकड़ने और न्याय दिलाने के प्रयास में सबसे आगे थे।

महाभारत युद्ध के वर्षों बाद, जब यदुवंश आपसी कलह में समाप्त हो गया — जिसे यदुवंश विनाश कहते हैं — तब सात्यकि और कृतवर्मा के बीच विवाद हुआ। इस विवाद ने एक भयंकर युद्ध का रूप ले लिया और अंततः सात्यकि ने कृतवर्मा को मार डाला। लेकिन उसी हिंसा में सात्यकि भी मारे गए। यह घटना प्रभास तीर्थ पर हुई थी।

इतिहास में कई ऐसे नाम छिपे हैं जो उस वक़्त तो चमके, पर समय की धूल ने उन्हें ढँक लिया। सात्यकि भी उन्हीं में से एक हैं। वे नायक थे — पर सुर्खियों में नहीं आए। उनकी निष्ठा, वीरता और धर्मनिष्ठा आज के दौर में भी प्रेरणा बन सकती है।

लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह की कलम से निकली Satyaki की कहानी

फिल्म निर्देशक और लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह ने जब इस चरित्र को लेकर रिसर्च शुरू की, तो उन्हें समझ आया कि ये कहानी तो सुनाई ही जानी चाहिए। 32 अध्यायों में बंटी ये किताब केवल एक योद्धा की वीरगाथा नहीं, बल्कि पौराणिक साहित्य का एक नया अध्याय है। जब कार्यक्रम के दौरान दुष्यंत प्रताप सिंह ने खुद मुकेश खन्ना को किताब का एक अंश सुनाया, तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “मैं केवल एक पन्ना सुनकर ही इसका फैन हो गया हूं, अब तो पूरी किताब पढ़नी ही पड़ेगी।”

Satyaki किताब की खासियतें जो इसे बनाती हैं अलग

  • 32 अध्यायों में विस्तृत कथा
  • सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग से जुड़ी घटनाएं
  • शास्त्रीय तथ्यों के साथ भविष्यवाणियां
  • कहानी कहने की सरल और रोचक शैली
  • ऑडियोबुक वर्जन भी उपलब्ध

हालाँकि प्रथम पृष्ठ पर लेखक ने स्पष्ट किया है

“उपरोक्त किताब पूरी तरह एक काल्पनिक रचना है। नाम, पात्र, स्थान एवं घटनाएं संपूर्ण रूप से लेखक की कल्पना शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनका वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत और किन्हीं भी वास्तविक घटनाओं से कोई भी संयोग या समानता सिर्फ संयोग है। समस्त ऐतिहासिक, पौराणिक या धार्मिक घटनाओं की वास्तविकता के सम्बन्ध में कोई दावा लेखक द्वारा न तो किया गया है और न ही ऐसा माना जाए। स्वीकृत अभिलेखों व स्थानों से पुस्तक के उद्धरण भिन्न हो सकते हैं। इन सभी का उपयोग सिर्फ काल्पनिक तरीके से किया गया है।”

यह डिस्क्लेमर यह स्पष्ट करता है कि पुस्तक की सामग्री पूरी तरह काल्पनिक है और किसी भी ऐतिहासिक, धार्मिक या वास्तविक व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है। फिर भी इनकी लेखन शैली बहूत ही प्रभावकारी है , जो की आपको दृश्य देखने को मजबूर कर देगी !

क्यों जरूरी है आज की पीढ़ी के लिए Satyaki को जानना?

महाभारत के अनकहे योद्धा सात्यकि की वीरगाथा को निर्देशक और लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह ने अपनी पुस्तक ‘सात्यकि: द्वापर का अजेय योद्धा’ में जीवंत किया है। इस पुस्तक का अनावरण ‘भीष्म पितामह’ के रूप में प्रसिद्ध अभिनेता मुकेश खन्ना द्वारा किया गया, जिन्होंने इसकी सराहना करते हुए कहा कि सात्यकि की कहानी आज की पीढ़ी के लिए जानना आवश्यक है।

पुस्तक 32 अध्यायों में विभाजित है और इसमें सात्यकि के जीवन के साथ-साथ सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग की घटनाओं का वर्णन है। लेखक ने इसमें भगवान कल्कि अवतार से जुड़ी संभावित भविष्यवाणियों को भी शास्त्रीय तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक अमेज़न और गूगल बुक्स जैसे प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है, और इसका ऑडियोबुक संस्करण भी श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हो रहा है।

सात्यकि, जो महाभारत के युद्ध में अर्जुन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे, उनकी गाथा महाभारत में सीमित रूप से वर्णित है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने उनके योगदान को उजागर किया है, जो आज तक जनमानस की स्मृति से ओझल रहा है। पुस्तक का ट्रेलर यूट्यूब पर रिलीज़ किया गया है, जिसे अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोग देख चुके हैं।

क्या बोले दुष्यंत सिंह मीडिया से?

लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह का कहना है कि यह पुस्तक केवल युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, भविष्य और धर्म की बात करती है। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक भारत के इतिहास की अब तक छुपी हुई रहस्यमयी घटनाओं की गाथा है, जो युवाओं में भी दिलचस्पी पैदा कर रही है।

यदि आप महाभारत के इस अनकहे योद्धा की कहानी जानना चाहते हैं, तो ‘सात्यकि: द्वापर का अजेय योद्धा’ आपके लिए एक अनमोल कृति हो सकती है।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म: Amazon, Google Books ये पुस्तक उपलब्ध है ।

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