‘Bhool Chuk Maaf’ रिव्यू: टाइम लूप में फंसी कहानी

‘Bhool Chuk Maaf’ रिव्यू: टाइम लूप में फंसी कहानी

23 मई को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई फिल्म ‘Bhool Chuk Maaf’ को लेकर दर्शकों में काफी समय से उत्सुकता थी। राजकुमार राव और वामिका गब्बी स्टारर यह फिल्म एक फैमिली ड्रामा है, जो उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर आधारित है और बनारस की गलियों से लेकर सरकारी नौकरी की विडंबनाओं तक कई दिलचस्प पहलुओं को छूने की कोशिश करती है। करण शर्मा के निर्देशन में बनी यह फिल्म एक ऐसे युवक की कहानी है जो एक टाइम लूप में फंस जाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह फिल्म वाकई में वीकेंड पर थिएटर में जाकर देखने लायक है या नहीं? इस रिव्यू में आपको मिलेंगे इस फिल्म के हर पहलू की ईमानदार झलकियां।

Bhool Chuk Maaf

Bhool Chuk Maaf की कहानी और निर्देशन की पकड़

‘Bhool Chuk Maaf’ की कहानी बनारस की गलियों में रची गई है, लेकिन यह बनारस असल में मुंबई के किसी स्टूडियो में खड़ा किया गया सेट है। निर्देशक करण शर्मा ने काशी की आस्था, संस्कृति और जीवनशैली को दिखाने की कोशिश तो की है, लेकिन यह प्रयास सतही लगता है। फिल्म की शुरुआत दो ब्राह्मण परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है—मिश्रा और तिवारी—जहां एक पंडित इतवार के दिन छत पर बैठकर खीर पकाते हैं, और उनका बेटा गाय को पूरनपोली खिलाने की बातें करता है। यह बेटा रिश्वत देकर सरकारी नौकरी पाने में सफल होता है और यहीं से कहानी एक टाइम लूप में घुस जाती है। फिल्म का हीरो, यानी राजकुमार राव, एक नेक मन्नत के चलते अपनी शादी से एक दिन पहले वाली तारीख में फंस जाता है। यह कहानी ‘Groundhog Day’ और नेटफ्लिक्स की ‘Naked’ जैसी फिल्मों की याद दिलाती है, लेकिन उस गहराई और सधा हुआ लेखन यहां नज़र नहीं आता।

राजकुमार राव की अदाकारी और चरित्र की विश्वसनीयता

राजकुमार राव को इस फिल्म Bhool Chuk Maaf में एक संघर्षशील युवक का किरदार निभाते देखा गया है, जो सरकारी नौकरी पाने के लिए रिश्वत देता है और बाद में अपने कर्मों का लेखा-जोखा टाइम लूप के ज़रिये समझने की कोशिश करता है। हालांकि अभिनय में उन्होंने हमेशा की तरह समर्पण दिखाया है, लेकिन इस फिल्म में उनकी उम्र किरदार पर भारी पड़ती है। एक 25-26 साल के युवक की भूमिका में वे जमें नहीं, और यही बात दर्शकों को किरदार से जोड़ने में बाधा डालती है। उनके संवादों में बनारसी ठसक की कमी है और ‘बकैती’ जैसे शब्दों का जबरन प्रयोग फिल्म को प्रामाणिक बनाने की बजाय नकली बनाता है।

वामिका गब्बी का किरदार और निर्देशन की कमज़ोरियां

Bhool Chuk Maaf में वामिका गब्बी फिल्म की हीरोइन हैं, लेकिन उन्हें स्क्रीनप्ले में वह महत्त्व नहीं दिया गया जो एक मजबूत महिला किरदार को मिलना चाहिए था। उनके किरदार में आत्मनिर्भरता तो है—वह अपने बेरोजगार प्रेमी की मदद तक करती हैं—लेकिन संवाद अदायगी और भाषा पर पकड़ की कमी उनके अभिनय को कमजोर बना देती है। साथ ही, निर्देशक ने उनके किसी भी दृश्य में प्रभावी क्लोजअप नहीं दिया, जिससे उनका अभिनय और भी फीका लगता है। यह निर्देशक और अभिनेत्री के बीच की ट्यूनिंग की कमी की ओर इशारा करता है।

सहायक कलाकार, संगीत और तकनीकी पक्ष

Bhool Chuk Maaf में सहायक भूमिकाओं में जाकिर हुसैन, रघुवीर यादव और सीमा पाहवा जैसे अनुभवी कलाकार हैं, लेकिन इन्हें ढंग का कोई दृश्य नहीं दिया गया है। सीमा पाहवा जब-जब स्क्रीन पर आती हैं, तब-तब उनकी सहजता अभिनय को चमक देती है, लेकिन फिल्म के कमजोर लेखन और निर्देशन ने इन कलाकारों की प्रतिभा को भुनाने में चूक कर दी। सिनेमेटोग्राफर सुदीप चटर्जी जैसे बड़े नाम से उम्मीद थी कि फिल्म में बनारस की खूबसूरती दिखेगी, लेकिन उनकी कैमरे की नजर सिर्फ ड्रोन शॉट्स तक ही सीमित रह गई। म्यूजिक की बात करें तो इरशाद कामिल के बोल और तनिष्क बागची का संगीत कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ता। बैकग्राउंड स्कोर केतन का जरूर ध्यान खींचता है, लेकिन फिल्म का संगीत ऐसा नहीं कि दर्शक थिएटर से निकलते वक्त उसे गुनगुनाएं।

निष्कर्ष:

‘Bhool Chuk Maaf’ एक दिलचस्प और संभावनाओं से भरी कहानी है, जो सरकारी नौकरी की हकीकत और युवाओं के संघर्ष पर बनी एक मज़बूत फिल्म बन सकती थी। लेकिन कमजोर पटकथा, अनफिट कास्टिंग और निर्देशन की अपरिपक्वता ने इस फिल्म को एक औसत अनुभव बना दिया। अगर आप वीकेंड पर परिवार के साथ मनोरंजन की तलाश में हैं तो यह फिल्म पूरी तरह आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। हो सकता है, इसे ओटीटी पर टुकड़ों में देखना बेहतर विकल्प हो। आपकी मेहनत की कमाई के ढाई-तीन हजार रुपये इस फिल्म पर खर्च करने से पहले सोचिए, क्योंकि यह फिल्म आपको थिएटर की सीट पर दो घंटे तक बांध नहीं पाएगी।

आपने यह फिल्म देखी? आपके अनुभव क्या रहे? कमेंट में ज़रूर बताएं और इस रिव्यू को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।

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