Karan Johar, हिंदी सिनेमा का वो नाम है जो सिर्फ एक निर्देशक या निर्माता नहीं, बल्कि एक भावना बन चुका है। उनका जीवन संघर्ष, आत्मविश्वास, शैली और संवेदनशीलता का मेल है। उन्होंने जिस तरह बॉलीवुड को पारिवारिक भावनाओं, स्टाइल और संवाद के एक नए रूप से जोड़ा, वह प्रेरणादायक है। Karan Johar का सिनेमा महज़ फिल्में नहीं, बल्कि रिश्तों, आत्म-स्वीकृति और समाज के साथ गहरे संवाद का जरिया बन गया है। उनके जीवन की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने अपने भीतर की जटिलताओं को कला के माध्यम से अभिव्यक्त किया और एक नई सोच को जन्म दिया।

“मैं अपनी पसंद से चलता हूँ” – एक झलक करण के बचपन की
Karan Johar का जन्म 25 मई 1972 को मुंबई में हुआ, एक ऐसे परिवार में जो पहले से ही फिल्मी दुनिया में जड़ें जमाए हुए था। उनके पिता यश जौहर, धर्मा प्रोडक्शंस के संस्थापक थे। हालांकि बचपन में करण को भौतिक सुख-सुविधाएं मिलीं, लेकिन भावनात्मक रूप से वे कई बार अकेलेपन और अस्वीकृति से जूझे। पारंपरिक मर्दानगी के मानकों से अलग होने के कारण स्कूल में उनका मज़ाक उड़ाया जाता था, लेकिन वे बचपन से ही अपनी असलियत को स्वीकारते हुए आगे बढ़ते रहे। उन्हें नाचना, फिल्मी डायलॉग्स बोलना और दर्पण के सामने अभिनय करना बेहद पसंद था। करण ने कभी इस अलगाव को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि अपने व्यक्तित्व की ताकत बना दिया।
“मेरे पास मम्मा हैं” – मां ही थीं करण की दुनिया
Karan Johar की ज़िंदगी में उनकी मां हीरू जौहर का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है। पिता यश जौहर के निधन के बाद हीरू ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गईं। Karan Johar ने हर जीवन निर्णय में अपनी मां से सलाह ली, चाहे वह किसी फिल्म का निर्देशन करना हो या पर्सनल लाइफ से जुड़ा कोई बड़ा कदम। उन्होंने मां के नाम को अपने बच्चों के नामकरण में भी अमर कर दिया – यश और रूही। करण का यह रिश्ता सिर्फ एक बेटे और मां का नहीं, बल्कि दो साथियों का है, जो हर तूफान में एक-दूसरे का सहारा बने।
“फ्रेंच बोलूं या डायरेक्शन?” – पढ़ाई से फिल्म तक का सफर
Karan Johar ने अपनी पढ़ाई ग्रीनलॉज़ हाई स्कूल और बाद में एच. आर. कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकॉनॉमिक्स से की। उन्होंने फ्रेंच भाषा में मास्टर्स भी किया, जो फिल्मी दुनिया में एक अनोखा कदम था। Karan Johar करियर की शुरुआत में वे असमंजस में थे – कभी हेयर स्टाइलिस्ट बनने का सोचा, तो कभी विज्ञापन की दुनिया में जाने की बात की। लेकिन सिनेमा के प्रति उनका लगाव इतना गहरा था कि उन्होंने आदित्य चोपड़ा के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम शुरू किया और वहीं से उनके निर्देशन की नींव रखी गई।
“कुछ कुछ होता है” – डायरेक्शन से धमाकेदार डेब्यू
Karan Johar का डायरेक्शन डेब्यू 1998 की फिल्म कुछ कुछ होता है से हुआ, जिसने भारतीय सिनेमा में रोमांटिक फिल्मों की एक नई परिभाषा दी। उन्होंने इस फिल्म की कहानी, संवाद और निर्देशन तीनों ही खुद संभाले और शाहरुख, काजोल और रानी को लेकर एक ऐसी प्रेम कहानी बनाई जिसने युवाओं के दिलों को छू लिया। इस फिल्म ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि करण को बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिलाया। यह फिल्म धर्मा प्रोडक्शंस की नई पहचान बनी और करण को एक भावुक, ग्लैमरस और सोचने वाला निर्देशक साबित किया।
“कभी खुशी कभी ग़म…” – भव्यता का दूसरा नाम
2001 में आई कभी खुशी कभी ग़म Karan Johar की सबसे भव्य और भावनात्मक फिल्मों में से एक थी। इसमें अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर और काजोल जैसे सितारे थे, और कहानी थी एक टूटे-बिखरे परिवार की, जो प्यार और माफ़ी से फिर एक होता है। करण ने हर सीन को इतना भव्य और भावुक बनाया कि दर्शक उसकी गहराई में डूब गए। यह फिल्म एक फैशन स्टेटमेंट भी बनी और करण की पहचान एक ऐसे निर्देशक के रूप में हुई जो इमोशन और स्टाइल को बखूबी जोड़ सकता है।
“तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है” – शाहरुख और करण की दोस्ती
Karan Johar और शाहरुख खान की दोस्ती बॉलीवुड की सबसे चर्चित और गहरी मित्रताओं में गिनी जाती है। दोनों की मुलाकात दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के सेट पर हुई, जहां करण असिस्टेंट डायरेक्टर थे। इसके बाद शाहरुख ने करण के निर्देशन में अपनी लगभग हर फिल्म में काम किया। हालांकि समय के साथ कुछ विवादों और अफवाहों ने इस रिश्ते को प्रभावित किया, लेकिन करण हमेशा कहते हैं कि शाहरुख सिर्फ उनके फिल्मों के हीरो नहीं, बल्कि उनकी ज़िंदगी के भी हीरो हैं। दोनों की दोस्ती में समझ, सम्मान और गहरा जुड़ाव है।
“मुझे काम से मोहब्बत है” – धर्मा प्रोडक्शंस की कहानी
पिता यश Karan Johar की मृत्यु के बाद करण ने धर्मा प्रोडक्शंस की कमान संभाली और इसे भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसों में बदल दिया। उन्होंने न सिर्फ खुद निर्देशन किया बल्कि नई प्रतिभाओं को भी मौका दिया – जैसे अयान मुखर्जी, शकुन बत्रा, और राज मेहता जैसे युवा निर्देशकों को लॉन्च किया। करण ने आलिया भट्ट, वरुण धवन और सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे सितारों को भी इंट्रोड्यूस किया। उन्होंने फिल्में सिर्फ बॉक्स ऑफिस के लिए नहीं बनाई, बल्कि उनमें संवेदनशीलता, सामाजिक मुद्दे और नई सोच भी जोड़ी।
“असली मज़ा तो कंट्रोवर्सी में है” – विवादों से नाता
Karan Johar का करियर जितना सफल रहा, उतना ही विवादों से भी घिरा रहा। AIB Roast में हिस्सा लेने पर अश्लीलता के आरोप लगे, वहीं 2016 में अजय देवगन ने उनपर फेक प्रमोशन का आरोप लगाया। Ae Dil Hai Mushkil में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान को लेने पर करण को धमकियां भी मिलीं। सबसे बड़ा विवाद 2020 में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद उठा, जब करण को नेपोटिज्म का चेहरा कहा गया। बावजूद इसके, Karan Johar ने कभी अपनी सोच से समझौता नहीं किया और कहते हैं – “मैं सच के साथ खड़ा हूं, चाहे तूफान कितना भी तेज़ क्यों न हो।”
“पापा बनने की ख्वाहिश…” – एकल पिता का सफर
2017 में Karan Johar ने सरोगेसी के माध्यम से पिता बनने का फैसला किया और जुड़वां बच्चों यश और रूही का स्वागत किया। यह निर्णय समाज के कई मानकों को चुनौती देने वाला था, लेकिन करण ने दिखा दिया कि प्यार के लिए किसी ‘परंपरा’ की जरूरत नहीं। वे अपने बच्चों को संवेदनशील, समझदार और खुले दिल का इंसान बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पिता बनना उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी है और वे हर दिन इस भूमिका को पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश करते हैं।
“दिल से हूं, स्टाइल से भी” – फैशन और फेवरेट्स
Karan Johar न सिर्फ निर्देशक हैं बल्कि स्टाइल आइकॉन भी हैं। वे अक्सर अपने बोल्ड फैशन चॉइसेज़ के लिए सुर्खियों में रहते हैं – कभी चमचमाते जैकेट्स, तो कभी यूनिक सनग्लासेस। उनका मानना है कि फैशन आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम है, और वे खुद को कपड़ों के ज़रिए बिना किसी डर के व्यक्त करते हैं। उन्हें शाहरुख खान, ऋतिक रोशन और रणबीर कपूर पसंद हैं, वहीं करीना कपूर, काजोल और आलिया भट्ट उनकी पसंदीदा अभिनेत्रियां हैं। Karan Johar को क्लासिक बॉलीवुड म्यूज़िक, ऐंटीक आइटम्स और पुराने जमाने की फिल्में बेहद पसंद हैं।
ऑस्कर मेरा सपना है” – इंटरनेशनल रुतबा
Karan Johar का कद सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि इंटरनेशनल सिनेमा में भी ऊंचा है। वे मिस वर्ल्ड जूरी में बैठ चुके हैं, World Economic Forum में ‘ग्लोबल यंग लीडर’ रह चुके हैं और यहां तक कि लंदन ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे पहले भारतीय फिल्म निर्माता थे जिन्हें टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बतौर पैनलिस्ट आमंत्रित किया गया। करण का सपना है कि भारतीय सिनेमा को एक दिन ऑस्कर मिले – और वे उस सपने को जीने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।