Mukesh Khanna : क्या कोई इंसान इतना दृढ़ हो सकता है कि उसके निभाए दो किरदार—एक महाभारत का भीष्म और दूसरा भारत का पहला देसी सुपरहीरो ‘शक्तिमान’—देश की दो पीढ़ियों के संस्कार और प्रेरणा का हिस्सा बन जाएं?
जिसने साठ के दशक में आंखें खोलीं, देश के विभाजन की पीड़ा से उपजे घावों को घर में देखा, लेकिन दिल में दृढ़ था कि “मैं खुद एक आदर्श बनूंगा”—वही हैं Mukesh Khanna।
वो न सिर्फ अभिनेता हैं, बल्कि विचार हैं। एक ऐसा चेहरा जिसने ‘कर्तव्य’ और ‘आदर्श’ को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि पर्दे पर ज़िंदा कर दिखाया। उनकी कहानी संघर्ष की है, आत्म-खोज की है, और सबसे बढ़कर, नैतिकता की विजय की है।
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आरंभिक जीवन: विभाजन की छाया में जन्मा बालक
Mukesh Khanna का जन्म 23 जून 1958 को हुआ। उनका परिवार मूलतः पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुल्तान और दीपालपुर शहरों से ताल्लुक रखता था। भारत-पाक विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया—साथ में वे सब ज़ख्म भी लाए, जो विस्थापन की त्रासदी से जन्मे थे।
मुंबई जैसे भीड़-भाड़ भरे शहर में बड़ा होना आसान नहीं था। लेकिन मुकेश के मन में हमेशा से एक अलग आग थी—वो बनने की, जो सबके लिए मिसाल हो।
शिक्षा और अभिनय की ओर झुकाव
Mukesh Khanna ने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई के ही एक विद्यालय से पूरी की और फिर सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज से विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने कानून में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। यह जानकर बहुतों को हैरानी होती है कि यह अभिनेता एक समय वकील बनना चाहता था।
लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था। अभिनय का शौक जो बाल्यकाल से ही था, वह उन्हें खींच लाया पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII)। वहाँ के दिनों ने उनकी आत्मा में कलाकार की स्पष्टता भर दी।
संघर्ष की शुरुआत: जब सपने मुंबई की गलियों में भटकते थे
FTII से निकलने के बाद उन्होंने फिल्मों और धारावाहिकों के लिए ऑडिशन देना शुरू किया। शुरुआती दौर में उन्हें दरवाज़ों पर घंटियां बजानी पड़ीं, पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
फिल्मी दुनिया में किसी गॉडफादर के बिना प्रवेश आसान नहीं होता। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। एक के बाद एक छोटे रोल किए, और फिर मौका मिला ऐसा जिसने उन्हें अमर बना दिया।
‘महाभारत’ का ‘भीष्म’ – भारतीय टेलीविज़न का अमर पात्र
1988 में बी. आर. चोपड़ा ने जब महाभारत धारावाहिक की घोषणा की, तो यह सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं था—यह भारत के टेलीविज़न इतिहास का मोड़ था। और जब ‘भीष्म पितामह’ की भूमिका के लिए कलाकार की तलाश की जा रही थी, तब Mukesh Khanna चुने गए।
उनके चेहरे की गंभीरता, आवाज़ की गूंज और संवादों की नैतिक शक्ति ने ‘भीष्म’ को एक विचार बना दिया।
उनका “मैं समय हूँ…” सुनना किसी मंत्रोच्चार की तरह महसूस होता था। यह भूमिका उन्हें पूरे देश के हर घर तक ले गई, जहां उन्हें केवल एक अभिनेता नहीं, ‘संस्कारों का रक्षक’ माना गया।
‘शक्तिमान’ – जब एक अभिनेता बना बच्चों का प्रेरणास्रोत
90 के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने भारत को उसका पहला देसी सुपरहीरो दिया—शक्तिमान। यह केवल एक धारावाहिक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन था।
1997 से 2005 तक चलने वाला यह शो हज़ारों बच्चों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया। शक्तिमान यानी पंडित गंगाधर शास्त्री—एक साधारण इंसान जो ध्यान, तपस्या, आत्मबल और नैतिकता से शक्तिमान बना।
Mukesh Khanna ने इस किरदार को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि उसे जीया। हर एपिसोड के अंत में बच्चों को दिए गए नैतिक संदेश आज भी याद किए जाते हैं—“बच्चों, गुटखा खाना बुरी बात है…” या “सच्चाई की राह कभी आसान नहीं होती, लेकिन अंत में वही जीतती है।”
बहुमुखी कलाकार: विविध भूमिकाओं का सफर
जहाँ शक्तिमान और भीष्म ने उन्हें अमर किया, वहीं उन्होंने अन्य धारावाहिकों और फिल्मों में भी कई यादगार भूमिकाएं निभाईं।
धारावाहिकों में:
- चंद्रकांता (मेघावत)
- विष्वामित्र (ऋषि विष्वामित्र)
- महायोद्धा, आर्यमान जैसे साइंस-फिक्शन शोज़ भी उन्होंने खुद प्रोड्यूस किए।
फिल्मों में:
- ‘तहलका’, ‘यलगार’, ‘सौगंध’, ‘खौफ’, ‘गैंग’, ‘हेरा फेरी’, ‘गुड्डु’, ‘राजा’ जैसी हिट फिल्मों में उन्होंने पुलिस अधिकारी, न्यायाधीश, राजनेता और सैनिक जैसे किरदार निभाए।
उनकी भारी आवाज़ और ऊँचा कद—सदैव किसी भी किरदार को गरिमा देते थे। खासकर कानून या व्यवस्था से जुड़ी भूमिकाओं में वह अत्यधिक प्रभावी रहे।
निर्माता, वक्ता और विचारक के रूप में विस्तार
Mukesh Khannaने केवल अभिनय तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने ‘भीष्म इंटरनेशनल’ नामक प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की और कई प्रोजेक्ट्स प्रोड्यूस किए।
वर्तमान में वे The Mukesh Khanna Show नामक यूट्यूब शो चला रहे हैं, जिसमें वह सामाजिक, फिल्मी और नैतिक विषयों पर निर्भीकता से चर्चा करते हैं।
उनकी स्पष्टवादिता कभी-कभी विवादों का कारण भी बनी, लेकिन उन्होंने कभी अपनी बातें कहने से परहेज़ नहीं किया।
सामाजिक दायित्व और नेतृत्व
2015 में उन्हें चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने बच्चों के लिए सार्थक सिनेमा के निर्माण की वकालत की और अपने कार्यकाल में कई बदलाव लाने की कोशिश की, हालांकि बाद में 2018 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने कोविड काल में भी Shaktimaan Masked वीडियो के माध्यम से लोगों को सावधानी के लिए जागरूक किया।
वैयक्तिक जीवन: एक संयमी साधक
Mukesh Khanna ने विवाह नहीं किया। वह अपने कार्य को ही तपस्या मानते हैं। उन्होंने अपने जीवन को समाज सेवा, नैतिकता और भारतीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर रखा है।
वह नियमित योग करते हैं, संयमित जीवन शैली अपनाते हैं और स्वयं को एक आध्यात्मिक योद्धा मानते हैं।
पुरस्कार और सम्मान
- Indian Telly Awards में ‘प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा’ के लिए नामांकन
- ‘Shaktimaan’ और ‘Mahabharat’ के लिए जनमानस से अपार सम्मान
- भारत सरकार और सामाजिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न मंचों पर सराहना
समकालीन योजनाएं और भविष्य
2025 में वह ‘शक्तिमान’ फिल्म के रूपांतरण पर कार्य कर रहे हैं, जिसे बड़े स्तर पर तैयार किया जा रहा है। उन्होंने घोषणा की है कि फिल्म में नया शक्तिमान कोई और होगा, लेकिन वो उसके संरक्षक की भूमिका में होंगे।
साथ ही, वे वेब-सीरीज़ और सामाजिक मुद्दों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री बनाने की योजना में हैं।
निष्कर्ष: एक आदर्श जो युगों तक जीवित रहेगा
Mukesh Khanna केवल अभिनेता नहीं हैं, वो भारतीय मानस के आदर्श हैं। उन्होंने अपने जीवन में सिद्ध किया कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम है।
जब भी कोई बच्चा शक्तिमान बनने का सपना देखता है, जब भी कोई बुज़ुर्ग ‘मैं समय हूँ’ सुनकर गर्व से सीना चौड़ा करता है—वहां कहीं ना कहीं Mukesh Khanna का प्रभाव है। उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि सही रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन वही स्थायी होता है। वह कहते हैं:
“भीष्म बनने के लिए जन्म से नहीं, संकल्प से त्यागी बनना पड़ता है।”