Panchayat Season 4 की समीक्षा: क्या अब फीका पड़ रहा है फुलेरा गांव का जादू?

Panchayat Season 4 की समीक्षा: क्या अब फीका पड़ रहा है फुलेरा गांव का जादू?

क्या आपने कभी सोचा था कि एक लौकी और एक प्रेशर कुकर भी चुनावी जंग का प्रतीक बन सकते हैं? अमेज़न प्राइम वीडियो की बेहद लोकप्रिय सीरीज़ पंचायत के चौथे सीजन में ऐसा ही होता है, जब फुलेरा गांव की चुनावी सियासत दो घरेलू चीज़ों के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन सवाल ये है — क्या इस नए चुनावी रंग में भी पहले जैसी ताजगी और सरलता है?

Panchayat Season 4

Panchayat Season 4 ने जहां पहले सीजन की सादगी और हल्के-फुल्के ह्यूमर से शुरुआत की थी, अब वो धीरे-धीरे बड़े ड्रामा और गंभीर टोन की तरफ बढ़ती दिख रही है। लेकिन क्या ये बदलाव दर्शकों को पसंद आ रहा है या ये एक “ओवरकुक्ड” कहानी बनकर रह गया है?

चुनावी जंग: लौकी बनाम प्रेशर कुकर

Panchayat Season 4 में फुलेरा गांव की राजनीति अब पूरी तरह से गरम हो चुकी है। इस सीजन में गांव की मौजूदा प्रधान मंनुजु देवी (नीना गुप्ता) और उनकी प्रतिद्वंदी क्रांति देवी (सुनीता राजवार) के बीच ज़बरदस्त टक्कर होती है। प्रतीकों के रूप में जहां मंनुजु देवी को मिली है ‘लौकी’, वहीं क्रांति देवी लड़ रही हैं ‘प्रेशर कुकर’ के साथ।

शुरुआत में यह चुनावी लड़ाई एक हास्यप्रद ग्रामीण किस्से की तरह लगती है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह समझ आ जाता है कि इस बार सब कुछ थोड़ा ज़्यादा पक चुका है। पहले के सीज़न्स में जो सादगी और यथार्थवाद था, वो अब कहीं खोता सा लग रहा है।

पिछले सीजन की विरासत और नई दिशा की तलाश

पिछले सीजन के अंत में पञ्चायत चुनावों की घोषणा और गांव में हुई हिंसा ने दर्शकों को चौथे सीजन के लिए बेसब्र कर दिया था। सीजन 4 वहीं से शुरू होता है जहां कहानी थमी थी—गांव की सत्ता की दौड़, जिसमें अब सादगी की जगह राजनीतिक शह और मात ने ले ली है।

अब हर किरदार की चाल चुनावी गणित से जुड़ी है।

मंनुजु देवी और उनके पति प्रधानजी (रघुबीर यादव) एक टीम की तरह आगे बढ़ते हैं।

दूसरी ओर, क्रांति देवी अपने पुराने तेवरों को बनाए रखने की कोशिश करती हैं, लेकिन इस बार उनका किरदार कमज़ोर दिखता है।

हालांकि कहानी में चुनावी गर्माहट है, लेकिन दर्शकों को वो पुरानी मज़ेदार हलचल नहीं मिलती जो पहले चप्पल चोरी कांड या ऋण पत्र वाले किस्सों में दिखती थी।

सचिव जी की दुनिया अब उतनी मासूम नहीं रही

Panchayat Season 4 में जेईटी की तैयारी कर रहा अभिषेक त्रिपाठी उर्फ सचिव जी (जितेंद्र कुमार) अब पहले जैसे भोले नहीं रहे। उनके अंदर अब थोड़ा संघर्ष और थोड़ा राजनीतिक चातुर्य दिखने लगा है। मगर, उनके किरदार को भी उतनी गहराई नहीं दी गई जितनी पहले थी।

सचिव जी और रिंकी (सान्विका) की केमिस्ट्री इस सीजन में काफी फीकी रही।

दोनों के कुछ सीन सिर्फ कहानी आगे बढ़ाने के लिए डाले गए लगते हैं, न कि किसी भावनात्मक गहराई के लिए।

अभिषेक का करियर संघर्ष भी इस बार सिर्फ सतह पर ही रह जाता है।

प्रमुख किरदारों का विकास या हाशिये पर धकेलना?

Panchayat Season 4 में जहां कहानी का स्केल बड़ा हुआ है, वहीं मुख्य किरदारों के व्यक्तिगत सफर पिछड़ते से लगते हैं।

विकास (चंदन रॉय) और प्रह्लाद (फैसल मलिक) अब उतने प्रभावी नहीं लगते जितने वो पहले थे।

मंनुजु देवी, जो पिछले सीजन तक सत्ता संभालने की कगार पर थीं, अब फिर से अपने पति की परछाई बनकर रह जाती हैं।

रिंकी, जो एक नई पहचान बनाना चाहती थी, इस सीजन में सिर्फ ‘प्योर लव इंटरेस्ट’ बनकर रह जाती हैं।

महिला किरदारों की यह सीमित प्रस्तुति उस शो के लिए निराशाजनक है, जो अपने पहले सीजनों में संतुलन के लिए जाना जाता था।

बढ़ता ड्रामा, घटती आत्मा

Panchayat Season 4 अब एक बड़े कैनवस पर खेल रही है — लंबे एपिसोड्स, और अधिक किरदार, और गहरे राजनीतिक समीकरण। लेकिन क्या यह विस्तार इसके मूल स्वर को दबा रहा है?

कहानी में गंभीर मोड़ हैं लेकिन वो उतना असर नहीं छोड़ते जितना पहले के छोटे-छोटे दृश्य करते थे।

हास्य और भावनात्मक संतुलन जो पहले पंचायत की ताकत था, अब खोता नजर आ रहा है।

पहले के छोटे, सरल मुद्दे जैसे ‘सीसीटीवी लगवाना’ या ‘लाइट के खंभे’ अब बड़ी राजनीति के शोर में दब गए हैं।

निर्देशन और प्रदर्शन: चमकते सितारे लेकिन धुंधली स्क्रिप्ट

निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा और लेखक चंदन कुमार ने इस बार शो को गंभीर मोड़ देने की कोशिश की है, लेकिन वो अपनी पुरानी आत्मा को कहीं पीछे छोड़ते दिखते हैं।

जितेंद्र कुमार अब भी अपने रोल में सहज हैं लेकिन स्क्रिप्ट का सपोर्ट कम है।

नीना गुप्ता और रघुबीर यादव के बीच का तालमेल ज़बरदस्त है, लेकिन उनके किरदारों को पहले जैसी रोशनी नहीं मिलती।

नई एंट्रीज़ जैसे दुर्गेश कुमार और पंकज झा कहानी में गहराई लाते हैं, लेकिन उन पर भी सीमित ध्यान है।

निष्कर्ष: फुलेरा अब पहले जैसा नहीं रहा

पंचायत ने जब शुरुआत की थी, तो वो एक ताजी हवा का झोंका था—हास्य, यथार्थ और संवेदना का अनोखा संगम। लेकिन Panchayat Season 4 में यह झोंका अब भारी और बोझिल हवा में बदलता नजर आता है। यह अब भी देखने लायक है, लेकिन वो पहले जैसा दिल जीत लेने वाला अनुभव नहीं रहा।

अगर आपने पंचायत के पहले सीजन को प्यार किया है, तो चौथा सीजन देखना ज़रूरी तो है, लेकिन उम्मीदें थोड़ी कम रखें। यह एक अच्छा शो है, लेकिन अब वो जादू नहीं रहा जो कभी सिर्फ एक चप्पल या एक ट्रैक्टर की मरम्मत पर कहानी खड़ी कर देता था।

रेटिंग: ⭐⭐⭐✰✰ (2.5/5)

क्या आप भी मानते हैं कि फुलेरा अब बदल गया है? क्या आपको ये बदलाव पसंद आया या नहीं? अपनी राय ज़रूर बताएं और इस लेख को दोस्तों के साथ साझा करें!

Leave a Reply