Rajkummar Rao : संघर्ष से स्टारडम तक की सच्ची कहानी

Rajkummar Rao : संघर्ष से स्टारडम तक की सच्ची कहानी

31 अगस्त 1984, हरियाणा के गुरुग्राम में जन्मा एक साधारण लड़का—राज कुमार यादव—जिसने सपनों के पीछे भागने की हिम्मत की और फिर उन सपनों को पर्दे पर जी भी लिया। वो लड़का, जो कभी सिनेमा हॉल में टिकट खरीदने के लिए जेब टटोला करता था, आज उसी पर्दे पर अपनी मौजूदगी से कहानियों को जीवंत कर रहा है। Rajkummar Rao की ज़िंदगी किसी फिल्म से कम नहीं—संघर्ष, जुनून, आत्म-विश्वास और सच्चे अभिनय का जीवंत उदाहरण।

शुरुआत का संघर्ष: सपनों की नींव

Rajkummar Rao का बचपन एक साधारण भारतीय परिवार में बीता। पिता सरकारी नौकरी में थे और माँ एक शांत, सरल गृहिणी। एक औसत मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े इस लड़के के पास ना तो कोई फिल्मी कनेक्शन था, ना ही विशेष संसाधन। लेकिन एक चीज़ जो उनके पास थी, वो थी “जुनून”—अभिनय के लिए। स्कूल के दिनों में नाटकों में भाग लेना, अपने किरदार में डूब जाना, और दर्शकों की तालियाँ सुनकर मुस्कुराना—यहीं से अभिनय की चिंगारी भीतर जलने लगी थी।

कॉलेज के दिनों में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज से स्नातक किया और साथ-साथ दिल्ली के प्रसिद्ध थिएटर ग्रुप्स जैसे ‘श्रीराम सेंटर’ और ‘क्षितिज’ में अभिनय करना शुरू किया। यही स्टेज, यही रंगमंच उनके असली गुरुकुल बन गए।

पुणे की राह: जब अभिनय बना धर्म

थिएटर की दुनिया में रंग जमा चुके Rajkummar Rao ने अपनी प्रतिभा को तराशने के लिए पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में दाखिला लिया। वहां पर उन्होंने अभिनय को केवल कला नहीं, बल्कि साधना के रूप में समझा। FTII में बिताए दो वर्षों ने उन्हें एक संवेदनशील, गहराई से सोचने वाला कलाकार बना दिया।

पढ़ाई पूरी करते ही उन्होंने मुंबई की ओर रुख किया—सपनों के शहर की ओर, जो हज़ारों सपनों को निगल जाता है लेकिन कुछ को सितारा भी बना देता है। मुंबई में शुरुआती दौर में उन्हें एक-एक दिन की मेहनत के बाद भी निराशा हाथ लगती रही। कभी ऑफिस-ऑफिस घूमना, कभी ऑडिशन की लंबी लाइन में खड़ा रहना, और कभी रेंट भरने के लिए दोस्तों से उधार लेना—ये सब Rajkummar Rao ने खुद जिया।

पहला ब्रेक: ‘लव, सेक्स और धोखा’ – जब कैमरे ने पहचाना

2010 में उन्हें पहली बार कैमरे के सामने एक बड़ा मौका मिला—दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘लव, सेक्स और धोखा’ में। यह फिल्म नई तकनीक, नए कलाकारों और यथार्थवादी अंदाज में बनी थी। इस फिल्म में Rajkummar Rao के अभिनय ने इंडस्ट्री के गंभीर निर्देशकों का ध्यान खींचा। उनकी आंखों में जो ईमानदारी और स्क्रीन पर जो गहराई थी, उसने साफ कर दिया कि यह लड़का अलग है।

इसके बाद उन्हें ‘रागिनी एमएमएस’, ‘शैतान’ और ‘तलाश’ जैसी फिल्मों में छोटे मगर असरदार रोल्स मिले, जिससे उन्होंने धीरे-धीरे खुद को एक भरोसेमंद अभिनेता के रूप में स्थापित किया।

करियर की उड़ान: ‘शाहिद’ से स्टारडम तक

साल 2013 Rajkummar Rao के करियर में निर्णायक मोड़ लेकर आया। फिल्म ‘शाहिद’, जो मानवाधिकार वकील शाहिद आज़मी के जीवन पर आधारित थी, में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई। इस फिल्म के लिए उन्होंने महीनों तक मुंबई की झुग्गियों में रहकर उस माहौल को महसूस किया जिसमें शाहिद जिया था। अभिनय इतना प्रामाणिक था कि दर्शक किरदार और अभिनेता में फर्क ही नहीं कर पाए। इस भूमिका के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

उसी साल ‘काई पो चे!’ जैसी व्यावसायिक सफलता भी उनके हिस्से आई, जिसमें उन्होंने तीन दोस्तों की कहानी में एक संवेदनशील कोच की भूमिका निभाई।

विविधता का पर्याय: ‘न्यूटन’, ‘ट्रैप्ड’, ‘बरेली की बर्फी’

Rajkummar Rao ने कभी भी खुद को किसी एक ढांचे में नहीं बाँधा। 2016 में आई फिल्म ‘ट्रैप्ड’ में उन्होंने एक ऐसे युवक का किरदार निभाया जो एक फ्लैट में बंद हो जाता है और कई दिनों तक वहाँ अकेला फंसा रहता है। पूरी फिल्म लगभग उनके अकेले पर ही टिकी थी—ना कोई दूसरा कलाकार, ना ज्यादा संवाद—सिर्फ उनका चेहरा और हावभाव। इस फिल्म ने उनके अभिनय कौशल को एक नया आयाम दिया।

2017 में आई ‘न्यूटन’ ने उन्हें एक और बड़ी पहचान दी। यह एक ईमानदार चुनाव अधिकारी की कहानी थी जो माओवादी क्षेत्र में निष्पक्ष चुनाव करवाना चाहता है। फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना पाई।

इसी वर्ष ‘बरेली की बर्फी’ में उनका किरदार ‘प्रीतम विद्रोही’ दर्शकों के लिए एक ट्रीट था—हास्य, मासूमियत और चंचलता का मिला-जुला संगम।

‘स्त्री’ से सुपरहिट की पहचान

2018 में आई ‘स्त्री’, एक हॉरर-कॉमेडी थी जो Rajkummar Rao के करियर में मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म की अनोखी थीम और उनके सहज हास्य ने दर्शकों को दीवाना बना दिया। ‘विक्की’ के रूप में उन्होंने साबित किया कि एक अच्छे अभिनेता को किसी बड़े सेटअप या भारी-भरकम डायलॉग्स की ज़रूरत नहीं होती—बस सच्चाई चाहिए।

बदलते किरदार, बढ़ती गहराई

Rajkummar Rao ने ‘जजमेंटल है क्या’, ‘लूडो’, ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय की विविधता दिखाई। रोमांस से लेकर थ्रिलर, ड्रामा से लेकर सस्पेंस, हर शैली में वह ढलते गए।

2021 में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई ‘द व्हाइट टाइगर’ में उनकी भूमिका ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई।

2022 की ‘बधाई दो’ में उन्होंने एक समलैंगिक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई—जो भारतीय समाज के कई रूढ़ियों को चुनौती देता है। इस भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

हालिया फिल्में और नयी ऊँचाइयाँ

2024 में उन्होंने ‘भीड़’, ‘स्रीकांत’ जैसी फिल्मों में गंभीर सामाजिक विषयों को छुआ। इन फिल्मों में उनकी अभिनय की परिपक्वता और विषय के प्रति ईमानदारी साफ दिखती है।

2025 में रिलीज हुई फिल्म ‘भूल चुक माफ़’ ने रोमांटिक कॉमेडी शैली में टाइम-लूप जैसा दिलचस्प प्रयोग किया और यह फिल्म एक बड़ी हिट रही।

अब उनकी अगली फिल्म ‘मालिक’, जो एक डार्क गैंगस्टर ड्रामा है, जुलाई 2025 में रिलीज़ हो रही है और यह दर्शकों के लिए एक नया Rajkummar Rao लेकर आएगी—बोल्ड, खतरनाक और रूह कंपा देने वाला।

निजी जीवन: प्रेम, पहचान और सादगी

Rajkummar Rao ने अभिनेत्री पत्रलेखा के साथ एक लंबा रिश्ता निभाया और 2021 में उन्होंने एक खूबसूरत समारोह में शादी की। दोनों की प्रेम कहानी उनकी फिल्मों से भी अधिक सजीव और स्थिर है—कोई हंगामा नहीं, बस परस्पर सम्मान और समझ। Rajkummar Rao ने अपने नाम से ‘यादव’ हटाकर ‘राव’ जोड़ा, और ‘राजकुमार’ में एक अतिरिक्त ‘म’ जोड़कर ज्योतिषीय विश्वास के तहत नाम को नया आकार दिया। राजकुमार जीवन में बहुत सादगी पसंद करते हैं—शुद्ध शाकाहारी हैं, योग करते हैं और फिटनेस का पालन करते हैं। वह दिखावे से दूर रहकर अपने अभिनय को ही अपनी पहचान मानते हैं।

सामाजिक योगदान और वैचारिक स्पष्टता

वह सिर्फ अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं। उन्होंने समय-समय पर सामाजिक मुद्दों पर मुखर होकर बातें रखीं हैं—चाहे वह चुनाव हो, पर्यावरण हो या LGBTQ+ अधिकार। वह PETAs ‘Hottest Vegetarian’ रह चुके हैं और उन्होंने COVID महामारी के दौरान कई राहत प्रयासों में योगदान दिया।

पुरस्कार और मान्यताएँ

  • राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (शाहिद)
  • फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (बधाई दो)
  • फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड (शाहिद, न्यूटन)
  • एशिया पैसिफिक स्क्रीन अवार्ड (न्यूटन)
  • फोर्ब्स इंडिया टॉप 100 सेलिब्रिटीज
  • GQ’s 50 Most Influential Young Indians

निष्कर्ष: समय का कलाकार, सच्चाई का चेहरा

Rajkummar Rao राव आज सिर्फ एक नाम नहीं, एक आंदोलन हैं। वह उन कलाकारों में से हैं जो सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जिम्मेदारी मानते हैं। उन्होंने बार-बार दिखाया कि सच्चे अभिनय को ना तो बड़ा बैनर चाहिए, ना ही कोई विरासत—बस एक ईमानदार दिल चाहिए।

उनकी हर फिल्म, हर भूमिका एक नई परत खोलती है समाज की, भावनाओं की, और मानवीय संवेदनाओं की। राजकुमार राव आने वाले वर्षों में भारतीय सिनेमा का वह चेहरा बनते जा रहे हैं, जो सरल है, सच्चा है और सबसे महत्वपूर्ण—असली है।

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