Ranveer Allahbadia का शर्मनाक, घिनौना, निम्नतर स्तर का मजाक: जब हंसी ने खींची मर्यादा की रेखा

Fake Fame Culture

Ranveer Allahbadia: तो हुआ यूं कि फेम के भूखे रणवीर अल्लाहबादिया (Ranveer Allahbadia) ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ शो में गेस्ट जज बनकर पहुंचे। शो के होस्ट समय रैना के साथ मिलकर मजाक-मस्ती चल रही थी। तभी रणवीर ने एक कंटेस्टेंट से पूछा, “तुम क्या चुनोगे: हर दिन अपने माता-पिता को सेक्स करते देखना या एक बार खुद शामिल होकर उसे हमेशा के लिए रोकना?” बस, फिर क्या था! इस सवाल ने जैसे आग में घी का काम किया। लोगों ने सोशल मीडिया पर रणवीर की जमकर खिंचाई की। किसी ने कहा, “ये तो हद हो गई!”, तो किसी ने इसे “अश्लीलता की इंतिहा” बताया। बात यहीं नहीं रुकी; महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी टिप्पणी की, “हर किसी को बोलने की आज़ादी है, लेकिन जब ये आज़ादी दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए, तो ये गलत है।

“Ranveer Allahbadia ने तुरंत माफी मांगते हुए कहा, “मेरा इरादा किसी की भावनाओं को आहत करने का नहीं था। मैंने जो कहा, वो अनुचित था, और इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं।” Ranveer Allahbadia ने बताया कि उस हिस्से को शो से हटा दिया गया है।

Ranveer Allahbadia

सोशल मीडिया के नंगों का नया दौर: जब बेशर्मी को ‘कूल’ कहा जाने लगा!

भाई, हद होती है किसी चीज़ की! पहले तो लोग मशहूर होने के लिए मेहनत करते थे, टैलेंट दिखाते थे, कुछ नया सोचते थे। लेकिन अब? अब बस एक बेहूदा बयान दे दो, दो-चार गंदे जोक मार दो, मम्मी-पापा पर भी ठट्ठा कर लो, और सोशल मीडिया पर छा जाओ। और मज़े की बात? सरकारें इन्हें Ranveer Allahbadia अवॉर्ड भी दे रही हैं!

Ranveer Allahbadia का ये नया विवाद कोई पहला मामला नहीं है, ये तो बस उस गंदगी की एक और कड़ी है जो सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है। कोई ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ की आड़ में गालियां बक रहा है, कोई कपड़े उतारकर ‘इन्फ्लुएंसर’ बन रहा है, और अब ये लोग हमारे माता-पिता तक को अपनी घटिया हरकतों में घसीटने लगे हैं।

शर्म बची है या बेच दी पूरी? कभी सोचो, ये सब देखकर नई पीढ़ी क्या सीखेगी? आजकल के बच्चे सोचते हैं कि जितना ज़्यादा बोल्ड, उतना ज़्यादा वायरल। मर्यादा की लकीरें मिट चुकी हैं और बेहूदगी ‘एंटरटेनमेंट’ कहलाने लगी है। बाप-दादा की इज्जत? संस्कार? ये सब अब ‘ओल्ड फैशन’ हो गया है। अब ‘कूल’ वो है जो किसी भी हद तक गिर सकता है।

गवर्नमेंट की भूमिका: सम्मान या समर्थन? सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार इन Ranveer Allahbadia लोगों को अवॉर्ड क्यों दे रही है? देश में हज़ारों लोग असली टैलेंट लेकर बैठे हैं, लेकिन उनको तो पहचान तक नहीं मिलती। और ये सोशल मीडिया के ‘नंगे-भूखे’ माइक उठाते ही सीधा स्टेज पर चढ़ जाते हैं। आखिर क्यों? क्या गंदगी फैलाने का अब इनाम मिलेगा?

Ranveer Allahbadia, समाज का पतन या क्रांति?

हर दौर में क्रांति आई है, लेकिन ये कैसी क्रांति है जो समाज को अंदर से सड़ा रही है? कोई ये समझाने को तैयार ही नहीं कि गलत क्या है और सही क्या। आज के यंगस्टर्स जिन्हें ‘आइडल’ मान रहे हैं, वे असल में समाज के गूंगे कातिल हैं। ये हमारी सोच, हमारी परंपरा और हमारी संस्कृति को चुपचाप मार रहे हैं।

अब वक़्त आ गया है! हमारे सामने दो रास्ते हैं—

  1. या तो हम इस बेशर्मी को नया ‘नॉर्मल’ मानकर चुपचाप देखते रहें।
  2. या फिर आवाज़ उठाएं और इनकी नकली शोहरत को वही खत्म करें जहां से ये शुरू होती है— सोशल मीडिया पर इनका बहिष्कार करके!

अब फैसला तुम्हारे हाथ में है— बेशर्मी के गुलाम बनोगे, या संस्कारों के रखवाले?

समाज का पतन या बर्बादी की क्रांति?

समाज का पतन या क्रांति? हर दौर में क्रांति आई है, लेकिन ये कैसी क्रांति है जो समाज को अंदर से सड़ा रही है? कोई ये समझाने को तैयार ही नहीं कि गलत क्या है और सही क्या। आज के यंगस्टर्स जिन्हें ‘आइडल’ मान रहे हैं, वे असल में समाज के गूंगे कातिल हैं। ये हमारी सोच, हमारी परंपरा और हमारी संस्कृति को चुपचाप मार रहे हैं।हर दौर में क्रांति आई है, लेकिन ये कैसी घिनौनी क्रांति है जो हमारी जड़ों को ही दीमक की तरह चाट रही है? ये कौन सा बदलाव है जो संस्कारों की लाश पर नाच रहा है? हद तो तब होती है जब गंदगी फैलाने वाले हीरो बना दिए जाते हैं और असली आदर्श किनारे धकेल दिए जाते हैं।आज के युवा जिन्हें ‘आइडल’ मानकर पूज रहे हैं, वे असल में समाज के गूंगे हत्यारे हैं! ये ना सिर्फ हमारी सोच को ज़हर की तरह दूषित कर रहे हैं, बल्कि हमारे संस्कारों का खुलेआम बलात्कार कर रहे हैं। ये उन उसूलों को रौंद रहे हैं, जिन पर हमारे पूर्वजों ने समाज की नींव रखी थी। इनकी हरकतें सिर्फ एक पीढ़ी को नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों को भी अंधेरे की गर्त में धकेल रही हैं। सोचो! ये कैसी आज़ादी है जहाँ अश्लीलता पर ताली बजती है, बेशर्मी पर लाइक्स मिलते हैं, और जो संस्कारों की बात करे, उसे ‘बैकवर्ड’ कहकर हंसी उड़ाई जाती है? ये कौन सा ‘मॉडर्न कल्चर’ है जहाँ अपनी ही मां-बाप का मज़ाक उड़ाना ट्रेंड बन गया है? क्या यही वो समाज है जिसे हम अगली पीढ़ी को सौंपकर जाएंगे?

अब वक़्त आ गया है या तो इस बेशर्मी के जाल से बाहर निकलो, या फिर तैयार रहो उस दिन के लिए जब तुम्हारी आने वाली नस्लें तुम्हें ही ताने मारेंगी कि “तुमने कुछ किया क्यों नहीं?”

इस “नंगई कल्चर” की जड़ें

(1) सोशल मीडिया और वायरलिटी का जुनून

पहले फ़िल्मों, किताबों और कला के ज़रिए समाज में बदलाव लाया जाता था। लेकिन अब सोशल मीडिया पर “लाइक, शेयर, फॉलो” की लत लग चुकी है। लोग जानते हैं कि जितना विवादास्पद कंटेंट, उतनी ज्यादा पॉपुलैरिटी!” यही कारण है कि डिजिटल क्रिएटर्स बोल्डनेस और अश्लीलता को ज़रूरी मानने लगे हैं।

(2) पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण

आज का यंग जेनरेशन “फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” और “बॉडी पॉजिटिविटी” के नाम पर हर सीमा पार करने को तैयार है। पश्चिमी देशों में भी ऐसी संस्कृति है, लेकिन वहाँ एक बैलेंस भी है। भारत में यह “कॉपी-पेस्ट” मॉडल अपनाया जा रहा है, जहाँ केवल नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है, पर कला और गहराई गायब है।

(3) बॉलीवुड और ओटीटी प्लेटफॉर्म की भूमिका

बॉलीवुड फिल्मों और ओटीटी शो में अब कंटेंट कम, सेक्सुअल सीन्स ज्यादा होते हैं। वेब सीरीज में अश्लीलता दिखाना एक नया ट्रेंड बन गया है। जब टॉप-लेवल पर ही यह हो रहा हो, तो सोशल मीडिया क्रिएटर्स भी वही फॉर्मूला अपनाते हैं।

(4) परिवार और शिक्षा की गिरती भूमिका

पहले घरों में संस्कृति और नैतिकता सिखाई जाती थी। आज पैरेंट्स खुद मोबाइल में व्यस्त रहते हैं और बच्चों को फ्री इंटरनेट दे देते हैं। नतीजा? बच्चे वही देखते हैं जो सामने आता है, और फिर उन्हीं इन्फ्लुएंसर्स को अपना आइडल मानने लगते हैं।

(5) सरकार और कानून की ढील

अश्लील कंटेंट के खिलाफ कानून तो हैं, लेकिन कोई सख्त एक्शन नहीं लिया जाता। उल्टा सरकार ऐसे इन्फ्लुएंसर्स को अवॉर्ड देकर और प्रमोट करके अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है। इस वजह से यह कल्चर और भी बढ़ता जा रहा है।

इस ट्रेंड को रोकने के लिए समाधान

(1) सोशल मीडिया की सख्ती और सेंसरशिप

अश्लीलता फैलाने वाले कंटेंट पर तुरंत बैन लगना चाहिए।
इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर संस्कृति और नैतिकता के हिसाब से फिल्टर होने चाहिए।
सरकार को चाहिए कि ऐसे इन्फ्लुएंसर्स के अकाउंट सस्पेंड करे जो समाज को गुमराह कर रहे हैं।

(2) जागरूकता अभियान (Awareness Campaigns)

लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि सोशल मीडिया की यह “कूलनेस” असल ज़िंदगी में खतरनाक हो सकती है।
मीडिया और इन्फ्लुएंसर्स को नैतिक जिम्मेदारी निभानी होगी, न कि सिर्फ लाइमलाइट में बने रहने के लिए कुछ भी करना होगा।
पैरेटिंग गाइडलाइंस जारी की जानी चाहिए, जिससे माता-पिता बच्चों की डिजिटल दुनिया पर नज़र रख सकें।

(3) बॉलीवुड और ओटीटी के कंटेंट पर नियंत्रण

वेब सीरीज और फिल्मों में सेक्सुअल कंटेंट पर सख्त निगरानी होनी चाहिए।
‘एडल्ट सर्टिफिकेट’ का सही मायनों में पालन किया जाना चाहिए।
ऐसे कंटेंट को प्रमोट करने वाले ब्रैंड्स का बहिष्कार किया जाना चाहिए।

(4) शिक्षा और परिवार की भूमिका को मजबूत करना

स्कूल और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।
माता-पिता को अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया गतिविधियों पर ध्यान देना होगा।
सही और गलत की समझ विकसित करनी होगी ताकि बच्चे खुद फैसला कर सकें कि किसे फॉलो करना चाहिए और किसे नहीं।

(5) सामाजिक और कानूनी कार्रवाई

समाज को यह तय करना होगा कि हमें किस तरह के रोल मॉडल चाहिए।
सरकार को चाहिए कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए सख्त गाइडलाइंस बनाए और “नग्नता फैलाने वालों पर एक्शन ले”।
“नेम एंड शेम” पॉलिसी लागू की जानी चाहिए, ताकि लोग जानें कि कौन समाज को गलत दिशा में ले जा रहा है।

Ranveer Allahbadia
Ranveer Allahbadia का शर्मनाक, घिनौना, निम्नतर स्तर का मजाक: जब हंसी ने खींची मर्यादा की रेखा

निष्कर्ष: हम कहाँ खड़े हैं और आगे क्या करना है?

अगर इस “नंगई कल्चर” को अभी रोका नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से पूरी तरह कट जाएंगी। जिस देश में कभी संस्कृति और नैतिकता को सबसे ऊँचा स्थान दिया जाता था, वहाँ आज फूहड़ता को नया ट्रेंड बनाया जा रहा है। यह समय है जब समाज, परिवार, सरकार, और खुद युवा पीढ़ी को मिलकर इसे रोकने की दिशा में कदम उठाने होंगे।

अगर हम सही समय पर ‘STOP’ नहीं कह पाए, तो आने वाले सालों में संस्कृति सिर्फ किताबों में बची रह जाएगी, और सोशल मीडिया पर सिर्फ “नंगई” का बोलबाला होगा।

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