हर साल 8 मार्च को Women`s Day मनाया जाता है, जो महिलाओं के संघर्ष, उपलब्धियों और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का दिन है। समाज में महिलाओं की भूमिका और उनकी उपलब्धियों को सिनेमा के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जाता रहा है। बॉलीवुड ने समय-समय पर ऐसी फिल्में दी हैं, जिन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण को न केवल बढ़ावा दिया है, बल्कि समाज की सोच बदलने में भी अहम भूमिका निभाई है।
Women`s Day महिला सशक्तिकरण और बॉलीवुड की भूमिका
रूढ़ियों को तोड़ना
पहले महिलाओं को फिल्मों में सिर्फ ‘सजावटी’ किरदार के रूप में दिखाया जाता था, लेकिन अब वे मजबूत और प्रेरणादायक भूमिकाओं में नजर आ रही हैं।
सामाजिक मुद्दों को उजागर करना
“पिंक”, “थप्पड़”, “राज़ी” जैसी फिल्में समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को उजागर करती हैं।
नई कहानियों और निर्देशकों का योगदान
गौरी शिंदे (इंग्लिश विंग्लिश), ज़ोया अख्तर (गली बॉय), मेघना गुलजार (राज़ी) जैसी महिला निर्देशक भी महिला-केंद्रित फिल्मों को आगे बढ़ा रही हैं।
महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
अब महिलाएं सिर्फ अदाकारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि फिल्म निर्माण, निर्देशन, लेखन और प्रोडक्शन में भी बड़ी संख्या में भाग ले रही हैं। बॉलीवुड में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें सीमित भूमिकाओं तक ही रखा जाता था। 1960 से 1990 के बीच कई महिलाओं ने पहली बार विभिन्न क्षेत्रों में कदम रखे और अपनी योग्यता साबित की।
निर्देशन – प्रमुख महिला फिल्म निर्देशक
फातिमा बेगम (1926 में पहली महिला निर्देशक) और अपर्णा सेन (1981, 90 के दौर में सक्रिय)
हालांकि फातिमा बेगम भारत की पहली महिला निर्देशक थीं, लेकिन 60-90 के दौर में अपर्णा सेन का नाम प्रमुखता से सामने आया। उन्होंने “36 चौरंगी लेन” (1981) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जो महिला-केंद्रित विषयों पर आधारित थी।
पटकथा लेखन – प्रमुख महिला पटकथा लेखिका
जोहरा सहगल और हनी ईरानी
- जोहरा सहगल ने 60-70 के दशक में पटकथा लेखन में अपनी जगह बनाई।
- हनी ईरानी (80-90 के दशक में) ने “लम्हे” (1991) और “कहो ना प्यार है” (2000) जैसी हिट फिल्मों की कहानी लिखी।
फिल्म निर्माण – प्रमुख महिला फिल्म निर्माता
वी. शांताराम की पत्नी – जयश्री और देविका रानी (1940 से आगे बढ़ते हुए 60-90 के दशक तक सक्रियता)
- देविका रानी भारत की पहली महिला निर्माता थीं, लेकिन 60-90 के दौर में बेना पॉल जैसी महिलाओं ने फिल्म निर्माण में कदम रखा और सामाजिक विषयों पर केंद्रित फिल्मों का निर्माण किया।
पार्श्व गायन – प्रमुख महिला पार्श्व गायिका
लता मंगेशकर और आशा भोंसले
- शमशाद बेगम (1919 – 2013) बॉलीवुड की पहली पार्श्व गायिकाओं में से एक थीं। उन्होंने कई भाषाओं में गीत गाए और संगीतकार नौशाद और ओ. पी. नैय्यर जैसी महान हस्तियों की पसंदीदा गायिका रहीं।
- लता मंगेशकर (50-90 के दशक तक सक्रिय) ने 60-70 के दशक में अपने करियर की ऊंचाई देखी।
- आशा भोंसले ने 70-90 के दौर में बॉलीवुड को नए संगीत का अनुभव कराया।
एक्शन और मार्शल आर्ट – महिला एक्शन हीरोइन
प्रिया राजवंश और हेमा मालिनी (70-90 के दशक में सक्रिय)
- प्रिया राजवंश ने “हीर रांझा” (1970) जैसी फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाई।
- हेमा मालिनी ने 80-90 के दशक में “सत्ते पे सत्ता” और “शोले” में स्टंट और एक्शन किए।
हास्य अभिनय – प्रमुख महिला कॉमेडियन
टुन टुन (60-80 के दशक में सक्रिय)
- टुन टुन भारतीय सिनेमा की पहली प्रमुख महिला कॉमेडियन थीं, जिन्होंने हास्य अभिनय में महिलाओं की भागीदारी को नया मुकाम दिया।
1960-1990 के बीच बॉलीवुड में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी और रूढ़ियों को तोड़ा। उन्होंने अभिनय, निर्देशन, गायन, लेखन, स्टंट, सिनेमैटोग्राफी और फिल्म निर्माण में अपनी जगह बनाई। आज ये महिलाएं नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
महिला सशक्तिकरण सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने पर्दे के पीछे भी अपनी जगह बनाई और बॉलीवुड को नए आयाम दिए।
बॉलीवुड में समय-समय पर ऐसी फिल्में बनी हैं, जो महिलाओं के संघर्ष, सशक्तिकरण, साहस और आत्मनिर्भरता को दर्शाती हैं। ये फिल्में न केवल महिलाओं की कहानियों को जीवंत बनाती हैं, बल्कि समाज में एक गहरी छाप भी छोड़ती हैं। यहां हम आपको ऐसी सर्वश्रेष्ठ महिला-केंद्रित फिल्मों की सूची दे रहे हैं, जो अपने दमदार किरदारों और प्रेरणादायक कहानियों के लिए जानी जाती हैं।
1. मदर इंडिया (1957)
निर्देशक: महबूब खान
मुख्य कलाकार: नरगिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार
इस फिल्म में एक गरीब मां के संघर्ष को दिखाया गया है, जो अपने बच्चों को पालने के लिए हर कठिनाई का सामना करती है लेकिन अपने नैतिक मूल्यों से कभी समझौता नहीं करती।
2. बैंडिट क्वीन (1994)
निर्देशक: शेखर कपूर
मुख्य कलाकार: सीमा बिस्वास, नर्मल पांडे
यह फिल्म फूलन देवी के जीवन पर आधारित है, जिसमें उनके संघर्ष, अन्याय और बदले की कहानी को दिखाया गया है।
3. साहिब बीबी और ग़ुलाम (1962)
निर्देशक: अबरार अल्वी
मुख्य कलाकार: मीना कुमारी, गुरुदत्त
यह फिल्म एक अमीर घराने की बहू की त्रासदी को दिखाती है, जो अकेलेपन से जूझते हुए शराब की लत में डूब जाती है।
4. बंदिनी (1963)
निर्देशक: बिमल रॉय
मुख्य कलाकार: अशोक कुमार, नूतन, धर्मेंद्र
ब्रिटिश राज के दौरान एक महिला कैदी की दर्दभरी कहानी को इस फिल्म में दर्शाया गया है।
5. कहानी (2012)
निर्देशक: सुजॉय घोष
मुख्य कलाकार: विद्या बालन
गर्भवती महिला के संघर्ष और उसके पति की खोज पर आधारित यह फिल्म रहस्य और रोमांच से भरपूर है।
6. क्वीन (2013)
निर्देशक: विकास बहल
मुख्य कलाकार: कंगना रनौत
एक लड़की की कहानी, जो अपने हनीमून पर अकेले जाने का फैसला करती है और इस सफर में खुद को खोजती है।
7. राज़ी (2018)
निर्देशक: मेघना गुलजार
मुख्य कलाकार: आलिया भट्ट
यह फिल्म एक कश्मीरी लड़की की कहानी है, जो जासूसी करने के लिए पाकिस्तान में शादी कर लेती है।
8. इंग्लिश विंग्लिश (2012)
निर्देशक: गौरी शिंदे
मुख्य कलाकार: श्रीदेवी
एक गृहिणी, जो अंग्रेजी न जानने के कारण अपमानित होती है, लेकिन अपनी मेहनत से सबको गलत साबित कर देती है।
9. डोर (2006)
निर्देशक: नागेश कुकूनूर
मुख्य कलाकार: आयशा टाकिया, गुल पनाग
यह फिल्म दो महिलाओं की भावनात्मक यात्रा को दिखाती है, जो एक-दूसरे से अनजान होते हुए भी गहराई से जुड़ी होती हैं।
10. अर्थ (1982)
निर्देशक: महेश भट्ट
मुख्य कलाकार: शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल
एक महिला की आत्मनिर्भरता और उसकी खुद की पहचान की खोज पर आधारित फिल्म।
11. ब्लैक (2005)
निर्देशक: संजय लीला भंसाली
मुख्य कलाकार: अमिताभ बच्चन, रानी मुखर्जी
यह फिल्म एक दृष्टिहीन और मूक-बधिर लड़की की प्रेरणादायक कहानी है।
12. पिंजर (2003)
निर्देशक: चंद्रप्रकाश द्विवेदी
मुख्य कलाकार: उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी
देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि में एक महिला की संघर्ष गाथा को दर्शाती यह फिल्म दिल को छू लेने वाली है।
13. चक दे! इंडिया (2007)
निर्देशक: शिमित अमीन
मुख्य कलाकार: शाहरुख़ ख़ान, विद्या मालवड़े
भारतीय महिला हॉकी टीम की सफलता की कहानी, जिसमें कोच कबीर ख़ान अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए संघर्ष करता है।
14. मिर्च मसाला (1986)
निर्देशक: केतन मेहता
मुख्य कलाकार: स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह
यह फिल्म औपनिवेशिक भारत में महिलाओं के शोषण और उनके विद्रोह को दिखाती है।
15. गंगूबाई काठियावाड़ी (2022)
निर्देशक: संजय लीला भंसाली
मुख्य कलाकार: आलिया भट्ट
एक महिला के वेश्यालय से माफिया क्वीन बनने तक की यात्रा को दर्शाती यह फिल्म सशक्तिकरण का प्रतीक है।
16. थप्पड़ (2020)
निर्देशक: अनुभव सिन्हा
मुख्य कलाकार: तापसी पन्नू
महिलाओं के आत्मसम्मान पर आधारित यह फिल्म दिखाती है कि एक थप्पड़ भी रिश्ते में हिंसा का प्रतीक हो सकता है।
17. हिचकी (2018)
निर्देशक: सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा
मुख्य कलाकार: रानी मुखर्जी
टॉरेट सिंड्रोम से जूझ रही एक शिक्षिका की कहानी, जो अपने छात्रों को प्रेरित करने में सफल होती है।
18. द डर्टी पिक्चर (2011)
निर्देशक: मिलन लूथरिया
मुख्य कलाकार: विद्या बालन
दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सिल्क स्मिता के जीवन पर आधारित यह फिल्म ग्लैमर की दुनिया के अंधेरे पक्ष को उजागर करती है।
19. चांदनी बार (2001)
निर्देशक: मधुर भंडारकर
मुख्य कलाकार: तब्बू, अतुल कुलकर्णी
एक महिला की संघर्षपूर्ण यात्रा, जो परिस्थितियों से लड़ते हुए अपनी एक नई पहचान बनाती है।
20. डियर ज़िंदगी (2016)
निर्देशक: गौरी शिंदे
मुख्य कलाकार: आलिया भट्ट, शाहरुख़ ख़ान
यह फिल्म मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-खोज की महत्वपूर्ण कहानी को दर्शाती है।
21. अस्तित्व (2000)
निर्देशक: महेश मांजरेकर
मुख्य कलाकार: तब्बू
महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अस्तित्व की पहचान पर आधारित यह फिल्म एक महत्वपूर्ण संदेश देती है।
हिंदी सिनेमा में दशकों तक पुरुष निर्देशकों का वर्चस्व रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ महिला निर्देशकों ने भी अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। फातिमा बेगम, शोभना समर्थ और जद्दनबाई जैसी अग्रणी महिलाओं ने उस दौर में निर्देशन की कमान संभाली, जब फिल्मी दुनिया में महिलाओं का कदम रखना भी समाज के लिए अस्वीकार्य था। इसके बाद 70-80 के दशक में सई परांजपे, अरुणा राजे, सिमी ग्रेवाल और मीरा नायर जैसी कुछ महिला निर्देशकों ने अपनी छाप छोड़ी। आज, बॉलीवुड में महिला निर्देशकों की एक मजबूत फौज उभरकर सामने आई है, जो सार्थक और अर्थपूर्ण सिनेमा के माध्यम से न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी पहचान बना रही हैं।
बॉक्स ऑफिस पर महिला निर्देशित फिल्मों की कमाई
महिला निर्देशकों की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर भी उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। फराह खान की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ ने लगभग 295 करोड़ रुपये की कमाई की थी। जोया अख्तर की ‘गली बॉय’ ने विश्वभर में 238.16 करोड़ रुपये और ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ ने 174.5 करोड़ रुपये कमाए थे। मेघना गुलजार की ‘राज़ी’ ने 130 करोड़ रुपये और ‘सैम बहादुर’ ने 128.17 करोड़ रुपये की कमाई की थी। इसके अलावा, कंगना रनौत द्वारा निर्देशित ‘मणिकर्णिका’ भी कुल 132 करोड़ रुपये कमाने में सफल रही थी。
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर महिला निर्देशकों की पहचान
पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट’ को गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा और कान्स के ग्रां प्री जैसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में नामांकन मिले। शुचि तलाटी की ‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ को सनडांस फिल्म फेस्टिवल में ड्रामेटिक वर्ल्ड सिनेमा के लिए ऑडियंस अवॉर्ड मिला। किरण राव की ‘लापता लेडीज़’ को मेलबर्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म (क्रिटिक्स चॉइस) का अवॉर्ड मिला, और इसकी स्क्रीनिंग टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में भी की गई। धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित 45 फीचर फिल्मों में से 24 फिल्मों की निर्देशक महिलाएं थीं।
अपनी शर्तों पर काम कर रहीं महिला निर्देशक
आज की महिला निर्देशक अपनी शर्तों पर फिल्में बना रही हैं और निर्देशन की डोर अपने हाथों में रख रही हैं। बड़े सितारे भी महिला निर्देशकों के साथ काम करने में पीछे नहीं हैं। जोया अख्तर की ‘लक बाय चांस’, ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’, ‘दिल धड़कने दो’ और ‘गली बॉय’ में बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं ने काम किया है। मेघना गुलजार ने ‘तलवार’, ‘राज़ी’ और ‘छपाक’ जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बनाई है। फराह खान ने ‘मैं हूं ना’, ‘ओम शांति ओम’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया है। नंदिता दास ने ‘फिराक’, ‘मंटो’ और ‘ज्विगाटो’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है।
गौरी शिंदे और अश्विनी अय्यर तिवारी की विशेष पहचान
गौरी शिंदे ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘डियर जिंदगी’ जैसी संवेदनशील फिल्मों का निर्देशन किया है। अश्विनी अय्यर तिवारी ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’ और ‘पंगा’ जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बनाई है। अलंकृता श्रीवास्तव ने ‘टर्निंग 30’ और ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है।
प्रथम महिला निर्देशक: फातिमा बेगम
साल 1926 में फातिमा बेगम ने ‘बुलबुल-ए-पाकिस्तान’ का निर्देशन किया, जिससे वे भारत की पहली महिला निर्देशक बनीं। उन्होंने ‘गॉडेस ऑफ लव’, ‘रांझा’, ‘चंद्रावली’, ‘शकुंतला’, ‘मिलन’ और ‘कनकतारा’ जैसी फिल्मों का भी निर्देशन किया।
जद्दनबाई का योगदान
जद्दनबाई ने ‘मैडम फैशन’, ‘हृदय मंथन’, ‘मोता का हार’ और ‘जीवन स्वप्न’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। वे मशहूर अभिनेत्री नरगिस की मां थीं और उन्होंने अपनी बेटी को भी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित होने में मदद की।
शोभना समर्थ और सई परांजपे की धाक
शोभना समर्थ ने ‘हमारी बेटी’ और ‘छबीली’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। सई परांजपे ने ‘चश्मे बद्दूर’, ‘कथा’, ‘साज’ और ‘दिशा’ जैसी फिल्मों से आर्ट सिनेमा को नया आयाम दिया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला निर्देशकों की मान्यता
1988 में मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ ने 61वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में शीर्ष पांच में जगह बनाई। 1993 में कल्पना लाजमी की ‘रुदाली’ को 66वें अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। दीपा मेहता की ‘अर्थ’ को 1999 में ऑस्कर के लिए विचारार्थ पेश किया गया। अनुषा रिजवी की ‘पीपली लाइव’ 2010 के ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी